नक्सल प्रभावित Gadchiroli-Chimur में भाजपा के लिए कठिन होगी चुनावी राह, धार्मिक मुद्दों पर वोट देने से बचते हैं मतदाता

गढ़चिरौली-चिमूर लोक सभा क्षेत्र महाराष्ट्र के 48 संसदीय क्षेत्र में से एक है। यह नक्सल प्रभावित अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र भी है। जहां पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के डॉक्टर नामदेव किरसन ने बीजेपी के अशोक नेते को मात देकर विजय हासिल की थी। 2002 में गठित परिसीमन आयोग की सिफारिश के बाद यह लोकसभा क्षेत्र 2008 से अस्तित्व में आया है। इस सीट पर 2009 में सर्वप्रथम चुनाव लड़ा गया था। चंद्रपुर और गढ़चिरौली जिले की तहसील चिमूर क्षेत्र को इस लोकसभा में शामिल किया गया है। तेलंगाना और छत्तीसगढ़ राज्य की सीमाओं से यह क्षेत्र जुड़ा हुआ है। गढ़चिरौली-चिमूर लोकसभा क्षेत्र में कई आदिवासियों जातियों के लोग निवास करते हैं। वनीय क्षेत्र होने के कारण यहां तेंदूपत्ता और महुआ का भी बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता है।यह लोकसभा क्षेत्र गोंदिया, गढ़चिरौली और चंद्रपुर जिलों में विस्तारित है। जिसके अंतर्गत अमगांव, आरमोरी, गढ़चिरौली, अहिरी, ब्रह्मपुरी और चिमूर के विधान क्षेत्र आते हैं। जिसमें से चार विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। वर्तमान में 6 में से तीन सीटें भारतीय जनता पार्टी, दो कांग्रेस और एक सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास है। अमगांव, गढ़चिरौली लोकसभा क्षेत्र की एकमात्र ऐसी विधानसभा है जो गोंदिया जिले के अंतर्गत आती है। यह सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है। यहां हमेशा से ही भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रहती है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के सहसराम मारोती कोरोटे ने यह सीट बीजेपी के संजय हनुमंतराव पुरम से छीन ली थी। महाराष्ट्र विधानसभा में 67 नंबर से जाने जानी वाली आरमोरी विधानसभा सीट गढ़चिरौली जिले के अंतर्गत ही आती है। यह निर्वाचन क्षेत्र भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। राज्य के गठन के साथ ही 1962 से अस्तित्व में आयी इस सीट पर एनसीपी को छोड़कर सभी दल जीत का स्वाद चख चुके हैं। वर्तमान में यहां से भारतीय जनता पार्टी के गजबे कृष्णा दामाजी विधायक हैं, जो लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं। उनसे पहले आनंदराव गंगराम गेदम इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। जो कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 2004 और 2009 का चुनाव जीते थे। महाराष्ट्र राज्य के दूसरे विधानसभा चुनाव से अस्तित्व में आयी गढ़चिरौली विधानसभा सीट गढ़चिरौली जिले के अंतर्गत ही आती है। यह निर्वाचन क्षेत्र भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस सीट पर अब तक शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अपना खाता खोलने में नाकाम रही है। पिछले दो चुनावों से यहां भारतीय जनता पार्टी के डॉक्टर देवराव मडगुजी होली चुनाव जीतते आ रहे हैं। उनके पहले कांग्रेस के डॉ नामदेव दल्लूजी उसेंडी यहां से विधायक थे। इस लोक सभा क्षेत्र की अहिरी विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित एक अन्य सीट है। यह निर्वाचन क्षेत्र भी पूरी तरह से गढ़चिरौली जिले के अंतर्गत ही आता है। जहां से वर्तमान में अजित पवार के गुट वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के आत्राम धर्मरावबाबा भगवंतराव विधायक हैं। भगवंत राव इससे पहले भी 1990 और 1999 से 2009 तक विधायक रह चुके हैं। यह उनका चौथा विधानसभा का कार्यकाल है। वे दो बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, एक बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और एक बार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के टिकट पर विधानसभा पहुंचे हैं। 2023 में उन्हें मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की कैबिनेट में भी जगह दी गई है।गढ़चिरौली-चिमूर लोकसभा के अंतर्गत आने वाला ब्रह्मपुरी निर्वाचन क्षेत्र चंद्रपुर जिले के अंतर्गत आता है। 1962 से अस्तित्व में आई इस सीट को पिछले चुनाव में कांग्रेस के विजय वड्डेटीवार ने जीता था। वे पिछले दो चुनावों से इस सीट पर जीते आ रहे हैं। उनके पहले यह सीट 15 साल तक भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में रही है। विधायक वड्डेटीवार महाराष्ट्र की वर्तमान विधानसभा में विपक्ष के नेता भी हैं। यह पद धारण करने वाले वे महाराष्ट्र के 27वें नेता हैं। इस पद पर रहने से पहले भी वे पूर्ववर्ती सरकारों के कई मंत्रालयों में बतौर मंत्री अपनी अलग-अलग जिम्मेदारी निभा चुके हैं। ब्रह्मपुरी की सीट जीतने से पहले वे चिमूर विधानसभा से भी लगभग 10 साल तक विधायक रहे थे।कांग्रेस के दबदबे बाला चिमूर विधानसभा क्षेत्र महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के तहत आता है। इस सीट पर 1962 से लेकर 1995 तक लगातार कांग्रेस चुनाव जीतती रही है। वर्तमान में यहां से भारतीय जनता पार्टी के बंटी भांगड़िया 10 साल से विधायक हैं। तो वहीं, उनसे पहले राज्य में विपक्ष के नेता विजय वड्डेटीवार पहले शिवसेना उसके बाद कांग्रेस के टिकट पर 10 साल विधायक रहे थे। भांगड़िया विदर्भ क्षेत्र के सबसे अमीर जनप्रतिनिधियों में शामिल हैं। उन्हें उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का करीबी भी समझा जाता है।इस सीट पर चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों से ज़्यादा स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाता है। चुनाव जीतने के लिए स्थानीय नेताओं की लोकप्रियता सबसे ज़्यादा मायने रखती है। हमेशा से ही प्रमुख एसटी और एससी आबादी का झुकाव अधिकांश समय भाजपा की ओर रहा है, जबकि यहां कोई धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं दिखता। क्षेत्र के मतदाता बेरोजगारी, वन भूमि स्वामित्व, विकास आदि से संबंधित स्थानीय मुद्दों पर वोट देते हैं। मतदाता प्रधानमंत्री मोदी के विकास एजेंडे और विशेष रूप से गरीबों और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन की भी सराहना करते हैं। गढ़चिरौली-चिमुर, चंद्रपुर और अन्य इलाकों में वामपंथी उग्रवाद एक बड़ी समस्या रही है। भारतीय जनता पार्टी नक्सलियों के खिलाफ है और पिछले दशक में नक्सल विरोधी अभियानों के तहत दर्जनों हथियारबंद आतंकवादियों को मार गिराया गया है। इसके अलावा राजनीतिक रूप से भी माओवादियों को विकास, बेहतर कनेक्टिविटी और आदिवासियों के मुख्यधारा में प्रवेश के कारण किनारे कर दिया गया है। कई मायनों में, घने जंगलों से घिरा गढ़चिरौली

नक्सल प्रभावित Gadchiroli-Chimur में भाजपा के लिए कठिन होगी चुनावी राह, धार्मिक मुद्दों पर वोट देने से बचते हैं मतदाता
गढ़चिरौली-चिमूर लोक सभा क्षेत्र महाराष्ट्र के 48 संसदीय क्षेत्र में से एक है। यह नक्सल प्रभावित अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र भी है। जहां पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के डॉक्टर नामदेव किरसन ने बीजेपी के अशोक नेते को मात देकर विजय हासिल की थी। 2002 में गठित परिसीमन आयोग की सिफारिश के बाद यह लोकसभा क्षेत्र 2008 से अस्तित्व में आया है। इस सीट पर 2009 में सर्वप्रथम चुनाव लड़ा गया था। चंद्रपुर और गढ़चिरौली जिले की तहसील चिमूर क्षेत्र को इस लोकसभा में शामिल किया गया है। तेलंगाना और छत्तीसगढ़ राज्य की सीमाओं से यह क्षेत्र जुड़ा हुआ है। गढ़चिरौली-चिमूर लोकसभा क्षेत्र में कई आदिवासियों जातियों के लोग निवास करते हैं। वनीय क्षेत्र होने के कारण यहां तेंदूपत्ता और महुआ का भी बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता है।

यह लोकसभा क्षेत्र गोंदिया, गढ़चिरौली और चंद्रपुर जिलों में विस्तारित है। जिसके अंतर्गत अमगांव, आरमोरी, गढ़चिरौली, अहिरी, ब्रह्मपुरी और चिमूर के विधान क्षेत्र आते हैं। जिसमें से चार विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। वर्तमान में 6 में से तीन सीटें भारतीय जनता पार्टी, दो कांग्रेस और एक सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास है। अमगांव, गढ़चिरौली लोकसभा क्षेत्र की एकमात्र ऐसी विधानसभा है जो गोंदिया जिले के अंतर्गत आती है। यह सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है। यहां हमेशा से ही भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रहती है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के सहसराम मारोती कोरोटे ने यह सीट बीजेपी के संजय हनुमंतराव पुरम से छीन ली थी। 

महाराष्ट्र विधानसभा में 67 नंबर से जाने जानी वाली आरमोरी विधानसभा सीट गढ़चिरौली जिले के अंतर्गत ही आती है। यह निर्वाचन क्षेत्र भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। राज्य के गठन के साथ ही 1962 से अस्तित्व में आयी इस सीट पर एनसीपी को छोड़कर सभी दल जीत का स्वाद चख चुके हैं। वर्तमान में यहां से भारतीय जनता पार्टी के गजबे कृष्णा दामाजी विधायक हैं, जो लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं। उनसे पहले आनंदराव गंगराम गेदम इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। जो कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 2004 और 2009 का चुनाव जीते थे। 

महाराष्ट्र राज्य के दूसरे विधानसभा चुनाव से अस्तित्व में आयी गढ़चिरौली विधानसभा सीट गढ़चिरौली जिले के अंतर्गत ही आती है। यह निर्वाचन क्षेत्र भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस सीट पर अब तक शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अपना खाता खोलने में नाकाम रही है। पिछले दो चुनावों से यहां भारतीय जनता पार्टी के डॉक्टर देवराव मडगुजी होली चुनाव जीतते आ रहे हैं। उनके पहले कांग्रेस के डॉ नामदेव दल्लूजी उसेंडी यहां से विधायक थे। इस लोक सभा क्षेत्र की अहिरी विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित एक अन्य सीट है। यह निर्वाचन क्षेत्र भी पूरी तरह से गढ़चिरौली जिले के अंतर्गत ही आता है। जहां से वर्तमान में अजित पवार के गुट वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के आत्राम धर्मरावबाबा भगवंतराव विधायक हैं। भगवंत राव इससे पहले भी 1990 और 1999 से 2009 तक विधायक रह चुके हैं। यह उनका चौथा विधानसभा का कार्यकाल है। वे दो बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, एक बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और एक बार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के टिकट पर विधानसभा पहुंचे हैं। 2023 में उन्हें मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की कैबिनेट में भी जगह दी गई है।

गढ़चिरौली-चिमूर लोकसभा के अंतर्गत आने वाला ब्रह्मपुरी निर्वाचन क्षेत्र चंद्रपुर जिले के अंतर्गत आता है। 1962 से अस्तित्व में आई इस सीट को पिछले चुनाव में कांग्रेस के विजय वड्डेटीवार ने जीता था। वे पिछले दो चुनावों से इस सीट पर जीते आ रहे हैं। उनके पहले यह सीट 15 साल तक भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में रही है। विधायक वड्डेटीवार महाराष्ट्र की वर्तमान विधानसभा में विपक्ष के नेता भी हैं। यह पद धारण करने वाले वे महाराष्ट्र के 27वें नेता हैं। इस पद पर रहने से पहले भी वे पूर्ववर्ती सरकारों के कई मंत्रालयों में बतौर मंत्री अपनी अलग-अलग जिम्मेदारी निभा चुके हैं। ब्रह्मपुरी की सीट जीतने से पहले वे चिमूर विधानसभा से भी लगभग 10 साल तक विधायक रहे थे।

कांग्रेस के दबदबे बाला चिमूर विधानसभा क्षेत्र महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के तहत आता है। इस सीट पर 1962 से लेकर 1995 तक लगातार कांग्रेस चुनाव जीतती रही है। वर्तमान में यहां से भारतीय जनता पार्टी के बंटी भांगड़िया 10 साल से विधायक हैं। तो वहीं, उनसे पहले राज्य में विपक्ष के नेता विजय वड्डेटीवार पहले शिवसेना उसके बाद कांग्रेस के टिकट पर 10 साल विधायक रहे थे। भांगड़िया विदर्भ क्षेत्र के सबसे अमीर जनप्रतिनिधियों में शामिल हैं। उन्हें उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का करीबी भी समझा जाता है।

इस सीट पर चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों से ज़्यादा स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाता है। चुनाव जीतने के लिए स्थानीय नेताओं की लोकप्रियता सबसे ज़्यादा मायने रखती है। हमेशा से ही प्रमुख एसटी और एससी आबादी का झुकाव अधिकांश समय भाजपा की ओर रहा है, जबकि यहां कोई धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं दिखता। क्षेत्र के मतदाता बेरोजगारी, वन भूमि स्वामित्व, विकास आदि से संबंधित स्थानीय मुद्दों पर वोट देते हैं। मतदाता प्रधानमंत्री मोदी के विकास एजेंडे और विशेष रूप से गरीबों और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन की भी सराहना करते हैं। गढ़चिरौली-चिमुर, चंद्रपुर और अन्य इलाकों में वामपंथी उग्रवाद एक बड़ी समस्या रही है। भारतीय जनता पार्टी नक्सलियों के खिलाफ है और पिछले दशक में नक्सल विरोधी अभियानों के तहत दर्जनों हथियारबंद आतंकवादियों को मार गिराया गया है। 

इसके अलावा राजनीतिक रूप से भी माओवादियों को विकास, बेहतर कनेक्टिविटी और आदिवासियों के मुख्यधारा में प्रवेश के कारण किनारे कर दिया गया है। कई मायनों में, घने जंगलों से घिरा गढ़चिरौली नक्सलियों के लिए आकर्षण का केन्द्र और अंतरराज्यीय जंक्शन है, क्योंकि यह लाल गलियारे में एक महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है तथा छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के साथ इसकी सीमाएँ लगती हैं। उग्रवाद एक बड़ा मुद्दा है। पिछले दशक में राज्य पुलिस के साथ-साथ केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा नक्सली गतिविधियों पर गंभीर हमला किया गया है। गढ़चिरौली के स्वदेशी नक्सल विरोधी बल, C60 कमांडो नक्सल विरोधी अभियानों और स्थानीय आबादी तक पहुंच के लिए प्रसिद्ध हैं। सशस्त्र उग्रवादियों को खत्म करने, सबसे पिछड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाने और विकास को सुविधाजनक बनाने की दोतरफा रणनीति ने गढ़चिरौली में सुरक्षा स्थिति में काफी सुधार किया है और बड़े हिस्से को नक्सलवाद से मुक्त किया है।