शादियों के जलवे (व्यंग्य)

शादी का लड्डू या नींबू खा चुके आम नागरिकों को अपनी शादी याद रहे न रहे, उच्च स्तरीय सम्पादन में बनी एल्बम घर की उदास चीजों के बीच बेचारी होकर पड़ी हो, रूतबा दिखाऊ शादियों के वीडियो में जो रस और रंग मिलता है उसका आकर्षण ही अलग है। आम नागरिकों की शादियों में वह सब कहां। उन शादियों में कहां कहां बहाऊं शैली में पैसा खर्चा जाता है और आम शादियों में कहां कहां से लाकर लगाऊं की सामाजिक मजबूरी होती है। हम ज़िंदगी की असलीयत की रीलें नहीं देखना चाहते बलिक दूसरों की दिखावटी रीलें देखने में मस्त रहते हैं।  एक आम शादी में जाना था। पत्नी से कहा देख तो लो इनके यहां से कितना शगुन आया हुआ है। उन्होंने कहा कम खाने वाले दो व्यक्तियों के खाने के पांच सौ एक तो बनते हैं। जहां अच्छा विवाह स्थल उपलब्ध न हो वहां आयोजन छोटे मैदान में किया जाता है। महंगा तो पड़ता है। कम आय वाले भी शगुन देते हैं वहीँ छ लोगों का परिवार छोटे बच्चों समेत आता है और सिर्फ पांच सौ एक रूपए में, अच्छे माहौल में स्वाद खाना खाकर निकल जाता है। ऐसा भी नहीं सोचा जाता कि पंडाल की डेकोरेशन के हिसाब से शगुन दें, काफी खर्च हुआ होगा । दो चार ऐसे भी निकल आएंगे जो शादी में आएंगे ज़रूर, शगुन देंगे लेकिन खाकर नहीं जाएंगे। कहेंगे बेटी की शादी में नहीं खाते।इसे भी पढ़ें: हालात काबू में हैं (व्यंग्य)बढ़िया कपडे पहनकर आएंगे लेकिन शादी में बुफे खाना सीखना बाक़ी है। जहां गोलगप्पे और चाट मिल रही होगी वहीँ खड़े होकर खाएंगे ताकि पिछला व्यक्ति इंतज़ार करता रहे या फिर धक्का मुक्की हो जाए । बैठने की जगह हो तो भी क्या। ऐसी शादी में आकर क्या फायदा जहां गोलगप्पे भी पेटभर न मिलें। खाना लगने की इंतजार नहीं करेंगे बलिक स्टाल्स पर पिले रहेंगे। कुछ लोगों ने तो पिछली रात से कुछ न खाया होगा। प्लेट में इतना खाना भर लेंगे कि बेचारी छिप जाएगी, खाया नहीं जाएगा तो कचरा पेटी में फेंक देंगे। कुछ डिशेज़ दूसरों को मिलें न मिलें। विवाह में बिना बुलाए खूब खाना भी परम्परा है और डीजे की धुनों पर नाचना भी। कई बार तो खाना खत्म हो जाता है। इससे बेहतर है अपनी शादी सादगी से करो और पैसे बचाओ। ज़रूरी है तो किसी शादी में जाओ नहीं तो घर बैठे देखो ख़ास शादियां और मुफ्त में मज़ा लो। खाना तो घर पर खा ही लोगे।- संतोष उत्सुक

शादियों के जलवे (व्यंग्य)
शादी का लड्डू या नींबू खा चुके आम नागरिकों को अपनी शादी याद रहे न रहे, उच्च स्तरीय सम्पादन में बनी एल्बम घर की उदास चीजों के बीच बेचारी होकर पड़ी हो, रूतबा दिखाऊ शादियों के वीडियो में जो रस और रंग मिलता है उसका आकर्षण ही अलग है। आम नागरिकों की शादियों में वह सब कहां। उन शादियों में कहां कहां बहाऊं शैली में पैसा खर्चा जाता है और आम शादियों में कहां कहां से लाकर लगाऊं की सामाजिक मजबूरी होती है। हम ज़िंदगी की असलीयत की रीलें नहीं देखना चाहते बलिक दूसरों की दिखावटी रीलें देखने में मस्त रहते हैं।  

एक आम शादी में जाना था। पत्नी से कहा देख तो लो इनके यहां से कितना शगुन आया हुआ है। उन्होंने कहा कम खाने वाले दो व्यक्तियों के खाने के पांच सौ एक तो बनते हैं। जहां अच्छा विवाह स्थल उपलब्ध न हो वहां आयोजन छोटे मैदान में किया जाता है। महंगा तो पड़ता है। कम आय वाले भी शगुन देते हैं वहीँ छ लोगों का परिवार छोटे बच्चों समेत आता है और सिर्फ पांच सौ एक रूपए में, अच्छे माहौल में स्वाद खाना खाकर निकल जाता है। ऐसा भी नहीं सोचा जाता कि पंडाल की डेकोरेशन के हिसाब से शगुन दें, काफी खर्च हुआ होगा । दो चार ऐसे भी निकल आएंगे जो शादी में आएंगे ज़रूर, शगुन देंगे लेकिन खाकर नहीं जाएंगे। कहेंगे बेटी की शादी में नहीं खाते।

इसे भी पढ़ें: हालात काबू में हैं (व्यंग्य)

बढ़िया कपडे पहनकर आएंगे लेकिन शादी में बुफे खाना सीखना बाक़ी है। जहां गोलगप्पे और चाट मिल रही होगी वहीँ खड़े होकर खाएंगे ताकि पिछला व्यक्ति इंतज़ार करता रहे या फिर धक्का मुक्की हो जाए । बैठने की जगह हो तो भी क्या। ऐसी शादी में आकर क्या फायदा जहां गोलगप्पे भी पेटभर न मिलें। खाना लगने की इंतजार नहीं करेंगे बलिक स्टाल्स पर पिले रहेंगे। 

कुछ लोगों ने तो पिछली रात से कुछ न खाया होगा। प्लेट में इतना खाना भर लेंगे कि बेचारी छिप जाएगी, खाया नहीं जाएगा तो कचरा पेटी में फेंक देंगे। कुछ डिशेज़ दूसरों को मिलें न मिलें। विवाह में बिना बुलाए खूब खाना भी परम्परा है और डीजे की धुनों पर नाचना भी। कई बार तो खाना खत्म हो जाता है। 

इससे बेहतर है अपनी शादी सादगी से करो और पैसे बचाओ। ज़रूरी है तो किसी शादी में जाओ नहीं तो घर बैठे देखो ख़ास शादियां और मुफ्त में मज़ा लो। खाना तो घर पर खा ही लोगे।

- संतोष उत्सुक