किसी गाँव में एक सीधा-सादा गधा रहता था, जिसका नाम गधेराम था। गधेराम बेहद मेहनती था, दिन-रात अपने मालिक के खेतों में काम करता था। गाँव के लोग उसे सम्मान की नजर से देखते थे, क्योंकि वह कभी किसी से शिकायत नहीं करता था और हमेशा अपने काम में लगा रहता था। लेकिन क्या मेहनत और ईमानदारी का जमाना सच में बीत चुका है?
एक दिन, गधेराम के मालिक ने सोचा, "क्यों न गधेराम को शहर ले जाया जाए और वहाँ उसका इस्तेमाल किया जाए?" मालिक की यह सोच सुनकर गधेराम बहुत उत्साहित हुआ। उसने सोचा, "शहर की चमक-धमक और आराम की जिंदगी का मजा लूंगा।" लेकिन क्या सच में शहर की चमक-धमक गाँव की सादगी से बेहतर है?
गधेराम को शहर लाया गया और उसे एक बड़े उद्योगपति के हवाले कर दिया गया। उद्योगपति ने गधेराम को देखा और हँसते हुए कहा, "यह गधा हमारे ऑफिस के लिए एकदम सही रहेगा।" अब सोचिए, एक गधे को ऑफिस में काम करने के लिए सही कैसे माना जा सकता है? क्या यह आधुनिक समाज की मानसिकता पर एक तंज नहीं है?
गधेराम को अब एक नयी जिम्मेदारी सौंपी गई- ऑफिस के कागजात और फाइलें इधर-उधर ले जाना। शहर के ऑफिस की जिंदगी बिल्कुल अलग थी। गधेराम ने देखा कि वहाँ के लोग अपने काम के लिए नहीं बल्कि अपनी चालाकी और होशियारी के लिए जाने जाते हैं। ऑफिस में सभी लोग एक-दूसरे की तारीफ करते थे, लेकिन पीठ पीछे बुराई करने से बाज नहीं आते थे। क्या यह सच में तरक्की का रास्ता है?
गधेराम ने अपने काम में पूरी मेहनत और लगन दिखाई, लेकिन ऑफिस के लोग उसे कभी गंभीरता से नहीं लेते थे। वे हमेशा उसे नीचा दिखाने की कोशिश करते थे। एक दिन, ऑफिस के एक कर्मचारी ने गधेराम से कहा, "अरे गधेराम, तुम तो बड़े मेहनती हो, लेकिन इस ऑफिस में मेहनत से नहीं, चालाकी से काम होता है।" क्या यह सीखने की बात है या फिर एक कटाक्ष?
गधेराम ने सोचा, "शायद मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि यहाँ कैसे काम किया जाता है।" उसने अपने आप को बदलने की कोशिश की। अब वह भी ऑफिस की राजनीति में शामिल हो गया। लेकिन क्या ईमानदारी और सच्चाई को छोड़कर सफल होना सही है?
अब गधेराम भी चालाकी और धूर्तता की राह पर चल पड़ा। लेकिन फिर भी, उसके साथियों ने उसे कभी स्वीकार नहीं किया। ऑफिस के लोग उसे पहले से भी ज्यादा परेशान करने लगे। उसे छोटे-मोटे कामों में उलझा कर रखा जाने लगा, ताकि वह कभी अपने असली काम में सफल न हो सके। गधेराम के आँखों में आँसू आने लगे। उसे अपने गाँव और वहाँ की सादगी भरी जिंदगी याद आने लगी। क्या वास्तव में सच्चाई और ईमानदारी का कोई मोल नहीं?
एक दिन, गधेराम ने अपने मालिक से कहा, "मालिक, मुझे गाँव वापस जाने दो। यहाँ की जिंदगी मेरे लिए नहीं है।" मालिक ने गधेराम की बात सुनी और उसे गाँव वापस भेजने का फैसला किया। लेकिन क्या वापस लौटने से समस्याओं का समाधान हो जाएगा?
गधेराम जब गाँव लौटा, तो वहाँ के लोगों ने उसका स्वागत किया। सभी ने देखा कि गधेराम ने शहर की चमक-धमक से क्या सीखा है। गधेराम ने गाँव के लोगों से कहा, "शहर की जिंदगी में चमक-धमक तो बहुत है, लेकिन सच्चाई और ईमानदारी का कोई मूल्य नहीं। वहाँ हर कोई एक-दूसरे को नीचे गिराने की कोशिश करता है। लेकिन यहाँ गाँव में, सादगी और मेहनत का सम्मान होता है।" क्या यह हमारे समाज की असली तस्वीर नहीं है?
गधेराम की यह बात सुनकर गाँव के लोग भावुक हो गए। उन्होंने गधेराम से वादा किया कि वे कभी भी अपनी सादगी और ईमानदारी नहीं छोड़ेंगे। गधेराम ने भी यह वादा किया कि वह हमेशा अपने गाँव और वहाँ की सादगी भरी जिंदगी के लिए मेहनत करेगा। लेकिन क्या वास्तव में यह वादे निभाए जा सकते हैं?
यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे दुनिया कितनी भी बदल जाए, सादगी और ईमानदारी का मूल्य हमेशा बना रहता है। गधेराम की कहानी एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो अपनी मेहनत और सच्चाई से कभी पीछे नहीं हटते। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम वास्तव में इस प्रेरणा को अपनाते हैं? क्या हम भी गधेराम की तरह सच्चाई और ईमानदारी की राह पर चल सकते हैं? या फिर हम भी आधुनिक समाज की चालाकियों में उलझ कर रह जाएंगे?
- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,
(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)