बारिश की गुस्ताखियां (व्यंग्य)

बारिश की पहली गुस्ताखी यह है कि लोक निर्माण विभाग, नगर निगम और पंचायत के पंचायती बंदों को नींद से जागना पड़ता है। उन्होंने काम करने की काफी कोशिश की, लेकिन लगातार फोन देखते हुए बैठे रहने से परेशान होने लगे तो बिना बताए बारिश आ गई और अफरातफरी मचा दी। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के फुटपाथ पर पड़ा मलबा हटा नहीं पाए थे वो बारिश में यहां वहां फ़ैल गया। नालियों में महीनों से पाइप फेंके हुए थे, बारिश एक दम आने की गलती के कारण, साफ़ सफाई के इरादे बह निकले। पच्चीस वार्डों में सफाई अभियान चलाने का दावा, बीस मिनट की बदतमीज़ बारिश ने धो दिया। शनिवार का दिन था इसलिए ज्यादा असर हुआ।  बारिश के कारण जगह जगह छोटे बड़े गड्ढों में पानी भर गया और डेंगू को आना पड़ा। जलभराव से निपटने व डेंगू की रोकथाम में लापरवाही सार्वजानिक हो गई। ज़िम्मेदार प्रशासन को लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ पारम्परिक सख्त कार्रवाई करने की लोकतान्त्रिक घोषणा करनी पड़ी। मानसून में असामयिक बारिश आ जाने की गलती के कारण पेड़, पौधे और पक्षी बहुत खुश दिखे। पहाड़ों पर सुबह हल्की धूप, दोपहर में बूंदा बांदी, शाम को झमाझम बारिश और शाम को कोहरा छा गया। ऐसा होने पर पर्यटक और दुकानदार भी मस्त रहे।इसे भी पढ़ें: आइए वृक्षारोपण ज़रुर करें (व्यंग्य)यह भी एक दम आई बारिश की गलती है कि आपदा कंट्रोल रूम में पानी घुस गया जहां अधिकांश कर्मचारी अपनी अपनी आपदाएं निबटाने बाहर गए हुए थे। आपदा अधिकारी को दंग होना पडा। क्विक रेस्पोंस टीम के चुस्त सदस्यों को अपनी वर्दी ढूंढनी पडी।   नवनिर्वाचित नगर निगम की स्वागत सभा भी नहीं हो पाई थी कि छवि धूमिल नहीं सीधे गीली हो गई। बरसाती पहनकर आए उच्चाधिकारी ने छापा मारा तो कर्मचारी गैर हाज़िर पाए गए। उनके वेतन पर रोक लगा दी गई। उनकी सुविधाएं वापिस लेनी पड़ी। उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई के आदेश देने पड़े। सर्वे टीमों का गठन, मजबूरन करना पडा। आनन फानन में हुक्म जारी किया गया कि सफाई वाहन के कर्मचारी, पार्षद महाराजाओं को भी रोज़ सम्पर्क करें। सभी ने माना कि यह सब बारिश आ जाने के कारण हुआ नहीं तो सब ठीक चल रहा होता। कई बंदे सोने की चेन बनवाकर चैन की बांसुरी बजा रहे होते।बारिश ने उच्च स्तरीय सड़कों का कुछ नहीं बिगाड़ा। कुछ दिन पहले ही बनाई निम्न स्तरीय सड़कों को बहा दिया। जलभराव के मामले में नेताजी को खफा होकर, अपनी पसंद के अफसरों को ही झूठमूठ लताड़ना पडा। उन्होंने भगवान् की मूर्ति के सामने गुस्से में हाथ जोड़कर कहा, आपको पता है इन नालायकों को हर बार की तरह उचित निर्माण और मरम्मत का समय नहीं मिल पाया। कुछ लोगों की वजह से, गलत काम ठीक से नहीं हो पाया। आप बारिश ही न करवाते तो आपका क्या बिगड़ जाता। वैसे सब मानते हैं, अब समय आ गया है, बारिश को अपनी गुस्ताखियां बंद करनी चाहिए।- संतोष उत्सुक

बारिश की गुस्ताखियां (व्यंग्य)
बारिश की पहली गुस्ताखी यह है कि लोक निर्माण विभाग, नगर निगम और पंचायत के पंचायती बंदों को नींद से जागना पड़ता है। उन्होंने काम करने की काफी कोशिश की, लेकिन लगातार फोन देखते हुए बैठे रहने से परेशान होने लगे तो बिना बताए बारिश आ गई और अफरातफरी मचा दी। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के फुटपाथ पर पड़ा मलबा हटा नहीं पाए थे वो बारिश में यहां वहां फ़ैल गया। नालियों में महीनों से पाइप फेंके हुए थे, बारिश एक दम आने की गलती के कारण, साफ़ सफाई के इरादे बह निकले। पच्चीस वार्डों में सफाई अभियान चलाने का दावा, बीस मिनट की बदतमीज़ बारिश ने धो दिया। शनिवार का दिन था इसलिए ज्यादा असर हुआ।  

बारिश के कारण जगह जगह छोटे बड़े गड्ढों में पानी भर गया और डेंगू को आना पड़ा। जलभराव से निपटने व डेंगू की रोकथाम में लापरवाही सार्वजानिक हो गई। ज़िम्मेदार प्रशासन को लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ पारम्परिक सख्त कार्रवाई करने की लोकतान्त्रिक घोषणा करनी पड़ी। मानसून में असामयिक बारिश आ जाने की गलती के कारण पेड़, पौधे और पक्षी बहुत खुश दिखे। पहाड़ों पर सुबह हल्की धूप, दोपहर में बूंदा बांदी, शाम को झमाझम बारिश और शाम को कोहरा छा गया। ऐसा होने पर पर्यटक और दुकानदार भी मस्त रहे।

इसे भी पढ़ें: आइए वृक्षारोपण ज़रुर करें (व्यंग्य)

यह भी एक दम आई बारिश की गलती है कि आपदा कंट्रोल रूम में पानी घुस गया जहां अधिकांश कर्मचारी अपनी अपनी आपदाएं निबटाने बाहर गए हुए थे। आपदा अधिकारी को दंग होना पडा। क्विक रेस्पोंस टीम के चुस्त सदस्यों को अपनी वर्दी ढूंढनी पडी।   

नवनिर्वाचित नगर निगम की स्वागत सभा भी नहीं हो पाई थी कि छवि धूमिल नहीं सीधे गीली हो गई। बरसाती पहनकर आए उच्चाधिकारी ने छापा मारा तो कर्मचारी गैर हाज़िर पाए गए। उनके वेतन पर रोक लगा दी गई। उनकी सुविधाएं वापिस लेनी पड़ी। उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई के आदेश देने पड़े। सर्वे टीमों का गठन, मजबूरन करना पडा। आनन फानन में हुक्म जारी किया गया कि सफाई वाहन के कर्मचारी, पार्षद महाराजाओं को भी रोज़ सम्पर्क करें। सभी ने माना कि यह सब बारिश आ जाने के कारण हुआ नहीं तो सब ठीक चल रहा होता। कई बंदे सोने की चेन बनवाकर चैन की बांसुरी बजा रहे होते।

बारिश ने उच्च स्तरीय सड़कों का कुछ नहीं बिगाड़ा। कुछ दिन पहले ही बनाई निम्न स्तरीय सड़कों को बहा दिया। जलभराव के मामले में नेताजी को खफा होकर, अपनी पसंद के अफसरों को ही झूठमूठ लताड़ना पडा। उन्होंने भगवान् की मूर्ति के सामने गुस्से में हाथ जोड़कर कहा, आपको पता है इन नालायकों को हर बार की तरह उचित निर्माण और मरम्मत का समय नहीं मिल पाया। कुछ लोगों की वजह से, गलत काम ठीक से नहीं हो पाया। आप बारिश ही न करवाते तो आपका क्या बिगड़ जाता। 

वैसे सब मानते हैं, अब समय आ गया है, बारिश को अपनी गुस्ताखियां बंद करनी चाहिए।

- संतोष उत्सुक