"साथ जियेगे साथ मरेगे" जैसी कहावत को सच कर जाती है कुछ जोड़ियां... इस मरहूम जोड़ी के कुछ संयोग जो आज भी लोगो को याद है।

"साथ जियेगे साथ मरेगे" जैसी कहावत को सच कर जाती है कुछ जोड़ियां... इस मरहूम जोड़ी के कुछ संयोग जो आज भी लोगो को याद है।

सोजत सिटी..साथियों आज मे आपके साथ कोई खबर शेयर करने नही आया हुँ आज मै आपको एक सच्ची अमर प्रेम कहानी और उनके साथ हुए कुछ ऐसे संयोगो को शेयर करने आया हुँ।जो लोगो के जहन(दिमाक) मे आज भी ताजा है।

 इस पतिपत्नी कि जोड़ी का इंतकाल(स्वर्गवास) हुए 4 साल हो गये है लेकिन जब भी अक्टूबर महीने कि 18 और 20 तारिखे आती है तो उनकी कहानी और उनके साथ हुए कुछ संयोग याद आ जाते है।

ये कहानी है राजस्थान रोडवेज के रिटायर्ड बस कन्डक्टर मरहूम अब्दुल हकिम चौहान(सिलावट) और उनकी मृदुभाषी पत्नी मरहूमा खेरुननिशा सिलावट कि है ।

जो साथ जिये हर सुख दुख मे साथ रहे बिमार भी एक साथ हुए और उनका इंतकाल भी लगभग एक साथ ही हुआ।

और जब इनके रिश्तेदारो और मित्रों ने इनके इंतकाल के बाद इनकी बिमारी हास्पिटल और इंतकाल की घटनाओ कि सब कड़ियों को जब आपस मे जोड़ा तो जो संयोग सामने आये उसे देख समझ कर सब हैरान रह गये।

दोनो एक साथ कुछ ही दिनो के अन्तर मे एकदूसरे कि बिमारी को देख कर एक दुसरे कि चिन्ता मे बिमार हुए जिन्हे उनके परिजनों ने जोधपुर के MDM अस्पताल मे भर्ती करवाया ।

 18 अक्टूबर 2020 को हकिम साहब कि तबीयत ज्यादा बिगड़ी उन्हें इमरजेंसी रूम के बेड़ नम्बर 4 पर शिफ्ट किया गया और वही पर उनका इंतकाल(स्वर्गवास) सुबह 11:30 बजे के आसपास हो गया उन्हे उनके निवास स्थान सोजत सिटी के बड़े कब्रिस्तान मे बाद नमाज ए मगरिब शाम लगभग 7:30 बजे सुपूर्द ए खाक किया गया।

छुपाने के बावजूद भी जब पति के मौत कि खबर उनकी पत्नी खेरुननिशा को पता चली तो सुनते ही उनकी तबीयत भी ज्यादा बिगड़ गयी तो उन्हें भी उसी इमरजेंसी रुम का बेड़ नम्बर 4 मिला और उन्होंने भी 20-अक्टूबर 2020 सवेरे 11:30 बजे के आसपास ही अन्तिम साँस ली।

उन्हे भी सोजत कि बड़ी कब्रिस्तान मे बाद नमाज़ ए मगरिब लगभग 7:30 बजे ही सुपुर्द ए खाक किया गया। आज भी सोजत कि बड़ी कब्रिस्तान मे मरहूम अब्दुल हकिम साहब और मरहूमा खेरुननिशा जी कि कब्रे पासपास है और ये पड़ोस कयामत तक रहेगा।

 एक दुसरे कि चिन्ता मे बिमार होना दोनो को इमरजेंसी रुम का एक ही बेड़ मिलना दोनो का एक हि वक्त इन्तकाल होना एक ही वक्त सुपुर्द ए खाक किया जाना ये संयोग अपने आप होते चले गये।

 तो कहानी थी मरहूम हकिम साहब और मरहूमा खेरुननिशा जी कि जो साथ जियेगे साथ मरेगे कि कहावत को सच कर इस दुनियां से रूखसत हो गये और कुछ अजीब संयोगो से लोगो के जहनों मे बस भी गये।