चुनाव और घोड़ों का व्यापार (व्यंग्य)

शासक सरकार के नेताओं को, चुनाव के बाद जनता चाहे तो विपक्ष में बिठा देती है। उनके सख्त सरकारी तेवर, नरम होते थोडा वक़्त तो लगता है। कुछ दिन बाद विपक्षी नेता कहना शुरू करते हैं, यह सरकार कुछ दिन की मेहमान है लेकिन समय कहता है इनके पास स्पष्ट बहुमत है। विपक्ष वाले, घोड़ों का पुराना व्यापार, नई ऑफर के साथ शुरू करने की संभावनाएं, दिन रात चौबीस घंटे टटोलते रहते हैं। कहीं नए चुनाव हों तो उनकी बांछें और होंट दोनों खुल जाते हैं। कुछ वरिष्ठ विपक्षी नेता भी समझाते रहते हैं कि कार्यकर्ता आत्म परीक्षण करें, तो लगता है उन्हें भी घोड़ों का प्रसिद्ध व्यापार फायदेमंद लगता है।   विपक्षी नेता कहते हैं, शासक पार्टी धड़ों में बंटी हुई है। एक बड़ा ग्रुप परिवर्तन की मांग करने वाला है। ऐसा लगता है उन्हें फिर से ख़्वाब में घोड़ों का व्यापार दिखा। इत्तफाक से अगली सुबह शासक पार्टी के प्रवक्ता कहते हैं, हमारी सरकार सुरक्षित है। पांच साल चलेगी। विपक्ष के पास दूसरे काम नहीं हैं इसलिए घोड़ों के व्यापार में इनकी दिलचस्पी फिर बढ़ गई है।इसे भी पढ़ें: गधे और घोड़े (व्यंग्य)राजनीति के पैंतरे अजीब होते हैं। एक छूटभैया नेता भी बयान दाग देता है, इन्हें वोट मत देना। इन्होंने पिछली बार मुझे मंच से धक्का देकर उतार दिया था। पिछली सरकार में मंत्री रहे, अपने मातहत अफसरों और कर्मचारियों को धमकाने के लिए प्रसिद्ध, खुद को घोड़ों के व्यापार का मंझा हुआ खिलाड़ी समझते हैं। यही जनाब ब्यान देंगे, मुख्य मंत्री सरकार चलाने में विफल हैं। सरकार का गिरना तय है। सरकार, सरकारी मशीनरी का उपयोग कर रही है। जोर देकर कहेंगे, सरकार ने प्रदेश को क़र्ज़ के दलदल में फंसा दिया है। चुनाव के नाम पर ठेकेदारों से भारी वसूली कर रही है। कर्मचारियों को ट्रांसफर और व्यापारियों को चालान का डर दिखा रही है। ज्योतिषी सरकार गिरने बारे शांत बैठे होंगे क्यूंकि सरकार के पास स्पष्ट बहुमत है लेकिन विपक्ष वाले सरकार का कुभविष्य ज़रूर बताएंगे। उप चुनाव होंगे तो घोषणा करेंगे कि उनकी पार्टी हर एक सीट जीतेगी।  इतिहास को पता है कि इनकी सरकार ने कभी, गलत तरीके से गलत काम नहीं किया। यह वही नेता हैं जो किसी शादी में मिलेंगे तो साथ बैठकर खाएंगे, पिएंगे, मज़ाक करेंगे लेकिन बेवकूफ जनता का उल्लू बनाकर रखेंगे। अपने शासन काल में हज़ारों करोड़ क़र्ज़ लेने वाले कहेंगे कि वर्तमान सरकार इतने हज़ार करोड़ का क़र्ज़ ले कर घी पी रही है। सरकारी मंत्री समझाएंगे, सरकार तो पहले ही हज़ारों करोड़ों के क़र्ज़ में डूबी हुई थी, विपक्ष वाले गलत हथकंडे अपना रहे हैं। क्या हथकंडे सही भी होते हैं। सरकार के पास कई महीने बाद भी पूर्ण बहुमत की सुखद अनुभूति है लेकिन विपक्षी कहेंगे, इनको हार का आभास हो गया है। फिर लगता है, विपक्ष को भविष्य में जीत का सपना आया है। जनता से बिना जाने कहते रहते हैं कि जनता इनसे तंग आ चुकी है। जनता इनको सबक सिखाएगी। जनता को स्वाभिमानी बताते हुए कहेंगे, जनता का ईमान कोई खरीद नहीं सकता। हमेशा हारने वाली बेचारी जनता, आम तौर पर मौन रहती है मगर कभी कभी डटकर जवाब देती है।  विपक्षी नेता को कहीं घोड़ा दिख गया तो झट से प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर, बढ़िया चायपान आयोजित कर कहेंगे, सरकार भ्रष्टाचार में बुरी तरह संलिप्त हैं। कानून व्यवस्था का जनाज़ा उठ चुका है। हमने विकास में कोई कसर नहीं छोडी थी। इनको विकास करना नहीं आता। यह हमारे विकास कार्यों पर दोबारा उदघाटन पट्टिकाएं लगा रहे हैं। कहेंगे, अब इनका कोई राजनीतिक दांव नहीं चलने वाला। यह माफिया राज को बढ़ावा देने वाली सरकार है। कभी कुछ नया भी कह देते हैं जैसे, झूठी घोषणाओं का पर्वत है सरकार, पर्वत के नीचे जनता पिस रही है।जब कोई पार्टी किसी और राज्य में, घोड़ों का खूब फायदेमंद व्यापार करने लगती है तो बयान आने लगते हैं, सत्ता का दुरूपयोग लंबे समय तक नहीं चलेगा। उनके कहने का आशय होता है कि सत्ता का दुरूपयोग कुछ समय तक तो सभी करते हैं, जिसे उपभोग भी कह सकते हैं। नेताओं  के घोड़ा संवाद से लगता है,  घोड़ों का पुराना व्यापार, बार बार होने वाले चुनावों में खूब फलता फूलता है।  - संतोष उत्सुक

चुनाव और घोड़ों का व्यापार (व्यंग्य)
शासक सरकार के नेताओं को, चुनाव के बाद जनता चाहे तो विपक्ष में बिठा देती है। उनके सख्त सरकारी तेवर, नरम होते थोडा वक़्त तो लगता है। कुछ दिन बाद विपक्षी नेता कहना शुरू करते हैं, यह सरकार कुछ दिन की मेहमान है लेकिन समय कहता है इनके पास स्पष्ट बहुमत है। विपक्ष वाले, घोड़ों का पुराना व्यापार, नई ऑफर के साथ शुरू करने की संभावनाएं, दिन रात चौबीस घंटे टटोलते रहते हैं। कहीं नए चुनाव हों तो उनकी बांछें और होंट दोनों खुल जाते हैं। कुछ वरिष्ठ विपक्षी नेता भी समझाते रहते हैं कि कार्यकर्ता आत्म परीक्षण करें, तो लगता है उन्हें भी घोड़ों का प्रसिद्ध व्यापार फायदेमंद लगता है। 
  
विपक्षी नेता कहते हैं, शासक पार्टी धड़ों में बंटी हुई है। एक बड़ा ग्रुप परिवर्तन की मांग करने वाला है। ऐसा लगता है उन्हें फिर से ख़्वाब में घोड़ों का व्यापार दिखा। इत्तफाक से अगली सुबह शासक पार्टी के प्रवक्ता कहते हैं, हमारी सरकार सुरक्षित है। पांच साल चलेगी। विपक्ष के पास दूसरे काम नहीं हैं इसलिए घोड़ों के व्यापार में इनकी दिलचस्पी फिर बढ़ गई है।

इसे भी पढ़ें: गधे और घोड़े (व्यंग्य)

राजनीति के पैंतरे अजीब होते हैं। एक छूटभैया नेता भी बयान दाग देता है, इन्हें वोट मत देना। इन्होंने पिछली बार मुझे मंच से धक्का देकर उतार दिया था। पिछली सरकार में मंत्री रहे, अपने मातहत अफसरों और कर्मचारियों को धमकाने के लिए प्रसिद्ध, खुद को घोड़ों के व्यापार का मंझा हुआ खिलाड़ी समझते हैं। यही जनाब ब्यान देंगे, मुख्य मंत्री सरकार चलाने में विफल हैं। सरकार का गिरना तय है। सरकार, सरकारी मशीनरी का उपयोग कर रही है। जोर देकर कहेंगे, सरकार ने प्रदेश को क़र्ज़ के दलदल में फंसा दिया है। चुनाव के नाम पर ठेकेदारों से भारी वसूली कर रही है। कर्मचारियों को ट्रांसफर और व्यापारियों को चालान का डर दिखा रही है। ज्योतिषी सरकार गिरने बारे शांत बैठे होंगे क्यूंकि सरकार के पास स्पष्ट बहुमत है लेकिन विपक्ष वाले सरकार का कुभविष्य ज़रूर बताएंगे। उप चुनाव होंगे तो घोषणा करेंगे कि उनकी पार्टी हर एक सीट जीतेगी।  

इतिहास को पता है कि इनकी सरकार ने कभी, गलत तरीके से गलत काम नहीं किया। यह वही नेता हैं जो किसी शादी में मिलेंगे तो साथ बैठकर खाएंगे, पिएंगे, मज़ाक करेंगे लेकिन बेवकूफ जनता का उल्लू बनाकर रखेंगे। अपने शासन काल में हज़ारों करोड़ क़र्ज़ लेने वाले कहेंगे कि वर्तमान सरकार इतने हज़ार करोड़ का क़र्ज़ ले कर घी पी रही है। सरकारी मंत्री समझाएंगे, सरकार तो पहले ही हज़ारों करोड़ों के क़र्ज़ में डूबी हुई थी, विपक्ष वाले गलत हथकंडे अपना रहे हैं। क्या हथकंडे सही भी होते हैं। 

सरकार के पास कई महीने बाद भी पूर्ण बहुमत की सुखद अनुभूति है लेकिन विपक्षी कहेंगे, इनको हार का आभास हो गया है। फिर लगता है, विपक्ष को भविष्य में जीत का सपना आया है। जनता से बिना जाने कहते रहते हैं कि जनता इनसे तंग आ चुकी है। जनता इनको सबक सिखाएगी। जनता को स्वाभिमानी बताते हुए कहेंगे, जनता का ईमान कोई खरीद नहीं सकता। हमेशा हारने वाली बेचारी जनता, आम तौर पर मौन रहती है मगर कभी कभी डटकर जवाब देती है।  

विपक्षी नेता को कहीं घोड़ा दिख गया तो झट से प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर, बढ़िया चायपान आयोजित कर कहेंगे, सरकार भ्रष्टाचार में बुरी तरह संलिप्त हैं। कानून व्यवस्था का जनाज़ा उठ चुका है। हमने विकास में कोई कसर नहीं छोडी थी। इनको विकास करना नहीं आता। यह हमारे विकास कार्यों पर दोबारा उदघाटन पट्टिकाएं लगा रहे हैं। कहेंगे, अब इनका कोई राजनीतिक दांव नहीं चलने वाला। यह माफिया राज को बढ़ावा देने वाली सरकार है। कभी कुछ नया भी कह देते हैं जैसे, झूठी घोषणाओं का पर्वत है सरकार, पर्वत के नीचे जनता पिस रही है।

जब कोई पार्टी किसी और राज्य में, घोड़ों का खूब फायदेमंद व्यापार करने लगती है तो बयान आने लगते हैं, सत्ता का दुरूपयोग लंबे समय तक नहीं चलेगा। उनके कहने का आशय होता है कि सत्ता का दुरूपयोग कुछ समय तक तो सभी करते हैं, जिसे उपभोग भी कह सकते हैं। नेताओं  के घोड़ा संवाद से लगता है,  घोड़ों का पुराना व्यापार, बार बार होने वाले चुनावों में खूब फलता फूलता है।  

- संतोष उत्सुक