बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए इन बातों पर गौर करें, खुद महसूस करेंगे व्यापक बदलाव

दुनिया का हर व्यक्ति चाहता है कि उनके बच्चों का बौद्धिक विकास हो, लेकिन उनमें से बहुतों को यह पता नहीं होता कि यह कैसे होगा? स्वास्थ्य बर्द्धक खानपान और सुनियोजित दिनचर्या के अलावा वह कौन-कौन सी चीजें हैं, जो आपके बच्चों की बौद्धिक क्षमता को विकसित करती हैं। यहां पर छात्रों के संज्ञानात्मक या बौद्धिक विकास का तातपर्य है उनके सोचने और तर्क करने की क्षमता का बहुमुखी विकास करना। कारण कि बहुधा बच्चे जिस कपोलकल्पित दुनिया में रहते हैं, उसे समझने के लिए वे अपने दिमाग, विचारों और सोच को कैसे व्यवस्थित करते हैं, यह पूरी तरह से उनके घरेलू पारिवारिक माहौल और स्कूल के समग्र शैक्षणिक वातावरण पर निर्भर करता है। इसलिए उनके चेतनात्मक विकास को कैसे प्रोत्साहित किया जाए, इस पर सार्थक चर्चा बदलते वक्त की मांग है। मसलन, कोई भी माता-पिता और देखभाल करने वाले अभिभावक अपने बच्चे की वर्तमान बौद्धिक अवस्था को समझें ताकि वे अपने बच्चे के संज्ञानात्मक या बौद्धिक विकास करने के लिए उन्हें सुनियोजित गतिविधियाँ प्रदान कर सकें। आपके लिए यह समझना जरूरी है कि रचनात्मक और कलात्मक खेल सामग्री बच्चों को समस्या समाधान में संलग्न होने देकर सीखने और विकास करने में मदद करते हैं। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उनके शब्दावली ज्ञान, वाक्य सृजन, वस्तु विमर्श, जटिल आकृतियों की नकल, तर्क और बहस करने की क्षमता में वृद्धि करना, 'क्यों और क्योंकि' जैसे शब्दों का प्रयोग समझाना आवश्यक है। इसे भी पढ़ें: मोबाइल फोन और टीवी देखने पर माता-पिता ने बच्चों को लगाई डांट, भाई-बहन पहुंचे कोर्ट, पेरेंट्स को हो सकती है 7 साल की जेल?इसके अलावा, उनमें कल, आज और कल जैसी अवधारणाओं की समझ विकसित करने की कोशिश की जाती है। उन्हें डेस्क या टेबल पर बैठने के तौर तरीके बताए जाते हैं। वे अपने शिक्षक के निर्देशों का पालन कैसे करें, इसका अनुशासन सिखाया जाता है। वहीं, वे किसी भी सरल कार्य को स्वतंत्र रूप से करने में कैसे सक्षम होंगे, इसका प्रारंभिक ज्ञान दिया जाना महत्वपूर्ण है। ततपश्चात, उनमें अधिक समय तक ध्यान देने की क्षमता विकसित करने की कोशिश की जाती है। उनमें अधिक जिम्मेदारी लेने की इच्छा जागृत करने, जैसे कि घर या स्कूल के काम, के प्रयास किये जाते हैं। उनमें भिन्न, धन और स्थान की अवधारणा विकसित की जाती है। उनकी समझ, समय ज्ञान, महीनों एवं सप्ताह के दिनों के नामक्रम और स्वयं पुस्तक पढ़ने का आनंद लेने की विधि बताई जाती है। चूंकि, 12 से 18 वर्ष की आयु के किशोर जटिल सोच रखने में सक्षम होते हैं। इसलिए अब वे संभावनाओं के बारे में अमूर्त रूप से सोचें, ज्ञात सिद्धांतों से तर्क वितर्क करें, अपने स्वयं के नए विचार या प्रश्न बनाएं, सभ्यता-संस्कृति के कई दृष्टिकोणों पर विचार करें, देश व समाज के विचारों या मतों की तुलना करें और बहस करें, ऐसी सीख इस सीरीज के माध्यम से दी जाती है। इसी कड़ी में उनके सोचने की प्रक्रिया के बारे में सोचना, विचार प्रक्रियाओं के प्रति जागरूक होना और छात्रों के बौद्धिक विकास और प्रगति के बारे में अधिक जानना महत्वपूर्ण होता है। लिहाजा, इसी कड़ी में छात्रों को यह समझाया जाता है कि लाइब्रेरी में जाने से उनकी शब्दावली, कल्पना और सीखने की इच्छाशक्ति कैसे बढ़ेगी। वहीं, लाइब्रेरी कार्ड बच्चों को उधार लेने और जिम्मेदारी की अवधारणाओं से परिचित कराने का एक शानदार तरीका है। इसलिए माता-पिता और अभिभावकों का यह दायित्व बनता है कि अपने बच्चे को संग्रहालयों, नए मोहल्लों और प्रदर्शनियों से सुपरिचित कराएं। अपने बच्चे के साथ जितना संभव हो सके उतना निर्बाध समय बिताएं। अपने घर में होमवर्क के लिए स्थान और दिनचर्या निर्धारित करें। यदि आप अपने बच्चे की प्रगति के बारे में चिंतित हैं तो अपने बच्चे के शिक्षक से बात करें। इसके अलावा, लंबे समय तक टेलीविजन, वीडियो और कंप्यूटर गेम देखने से बचें। वहीं, किशोरावस्था के छात्र-छात्राओं को स्कूल और घर में व्यक्तिगत निर्णय लेने पर केंद्रित अधिक जटिल सोच के उपयोग के बारे में बताइये। वह स्कूल के काम में औपचारिक तार्किक संक्रियाओं का उपयोग दिखाना कैसे शुरू करेगा, यह समझाइए। विद्यार्थी प्राधिकार और समाज के मानकों पर सवाल उठाना कैसे शुरू करेंगे, यह बतलाइए। उन्हें विभिन्न विषयों पर अपने विचार और दृष्टिकोण बनाना और बोलना शुरू करना सिखाईए। आप अपने बच्चे को इस बारे में बात करते हुए सुन सकते हैं कि उन्हें कौन से खेल या समूह पसंद हैं और माता-पिता के कौन से नियम बदलने चाहिए, इसलिए इसके समग्र पहलुओं के बारे में उन्हें सुसंगत दृष्टिकोण विकसित करना सिखाईए।इस अवस्था में विद्यार्थी अधिक जटिल, दार्शनिक और भविष्यवादी चिंताओं को शामिल करने के लिए सोच का विस्तार करता है। इस नजरिए से उनके द्वारा अक्सर अधिक व्यापक रूप से प्रश्न पूछे जाते हैं और अधिक व्यापक रूप से विश्लेषण किया जाता है। लिहाजा, वह अपने स्वयं के आचार संहिता के बारे में सोचता है और उसे बनाना शुरू करता है? वह विभिन्न संभावनाओं के बारे में सोचता है और अपनी पहचान विकसित करना शुरू करता है। वह संभावित भावी लक्ष्यों पर व्यवस्थित रूप से विचार करना शुरू कर देता है। उसके मन तरंग में यह सवाल उठते हैं कि मैं क्या सही समझता हूँ? मैं कौन हूँ? मैं क्या चाहता हूँ? इस उम्र वय में विद्यार्थी कम आत्म-केंद्रित अवधारणाओं और व्यक्तिगत निर्णय लेने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जटिल सोच का उपयोग करता है। वह न्याय, इतिहास, राजनीति, ज्ञान-विज्ञान और देशभक्ति जैसी वैश्विक अवधारणाओं के बारे में विचारों में हुई वृद्धि पर डिस्कशन करता है। ऐसे में अक्सर विषयों पर आदर्शवादी विचार विकसित हो जाते हैं, जिससे बहस हो सकती है और विरोधी विचारों के प्रति असहिष्णुता विकसित हो सकती है। इसलिए उनके लिए उपयोगी सभी पहलुओं के बारे में विस्तार पूर्वक समझाइए, ताकि उनके व्यक्तित्व में सजगता और निखार दोनों आए। क्योंकि इस उम्र में छात्रगण कैरियर संबंधी निर्णय लेने और

बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए इन बातों पर गौर करें, खुद महसूस करेंगे व्यापक बदलाव
दुनिया का हर व्यक्ति चाहता है कि उनके बच्चों का बौद्धिक विकास हो, लेकिन उनमें से बहुतों को यह पता नहीं होता कि यह कैसे होगा? स्वास्थ्य बर्द्धक खानपान और सुनियोजित दिनचर्या के अलावा वह कौन-कौन सी चीजें हैं, जो आपके बच्चों की बौद्धिक क्षमता को विकसित करती हैं। यहां पर छात्रों के संज्ञानात्मक या बौद्धिक विकास का तातपर्य है उनके सोचने और तर्क करने की क्षमता का बहुमुखी विकास करना। कारण कि बहुधा बच्चे जिस कपोलकल्पित दुनिया में रहते हैं, उसे समझने के लिए वे अपने दिमाग, विचारों और सोच को कैसे व्यवस्थित करते हैं, यह पूरी तरह से उनके घरेलू पारिवारिक माहौल और स्कूल के समग्र शैक्षणिक वातावरण पर निर्भर करता है। इसलिए उनके चेतनात्मक विकास को कैसे प्रोत्साहित किया जाए, इस पर सार्थक चर्चा बदलते वक्त की मांग है। 

मसलन, कोई भी माता-पिता और देखभाल करने वाले अभिभावक अपने बच्चे की वर्तमान बौद्धिक अवस्था को समझें ताकि वे अपने बच्चे के संज्ञानात्मक या बौद्धिक विकास करने के लिए उन्हें सुनियोजित गतिविधियाँ प्रदान कर सकें। आपके लिए यह समझना जरूरी है कि रचनात्मक और कलात्मक खेल सामग्री बच्चों को समस्या समाधान में संलग्न होने देकर सीखने और विकास करने में मदद करते हैं। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उनके शब्दावली ज्ञान, वाक्य सृजन, वस्तु विमर्श, जटिल आकृतियों की नकल, तर्क और बहस करने की क्षमता में वृद्धि करना, 'क्यों और क्योंकि' जैसे शब्दों का प्रयोग समझाना आवश्यक है। 

इसे भी पढ़ें: मोबाइल फोन और टीवी देखने पर माता-पिता ने बच्चों को लगाई डांट, भाई-बहन पहुंचे कोर्ट, पेरेंट्स को हो सकती है 7 साल की जेल?

इसके अलावा, उनमें कल, आज और कल जैसी अवधारणाओं की समझ विकसित करने की कोशिश की जाती है। उन्हें डेस्क या टेबल पर बैठने के तौर तरीके बताए जाते हैं। वे अपने शिक्षक के निर्देशों का पालन कैसे करें, इसका अनुशासन सिखाया जाता है। वहीं, वे किसी भी सरल कार्य को स्वतंत्र रूप से करने में कैसे सक्षम होंगे, इसका प्रारंभिक ज्ञान दिया जाना महत्वपूर्ण है। ततपश्चात, उनमें अधिक समय तक ध्यान देने की क्षमता विकसित करने की कोशिश की जाती है। उनमें अधिक जिम्मेदारी लेने की इच्छा जागृत करने, जैसे कि घर या स्कूल के काम, के प्रयास किये जाते हैं। उनमें भिन्न, धन और स्थान की अवधारणा विकसित की जाती है। उनकी समझ, समय ज्ञान, महीनों एवं सप्ताह के दिनों के नामक्रम और स्वयं पुस्तक पढ़ने का आनंद लेने की विधि बताई जाती है। 

चूंकि, 12 से 18 वर्ष की आयु के किशोर जटिल सोच रखने में सक्षम होते हैं। इसलिए अब वे संभावनाओं के बारे में अमूर्त रूप से सोचें, ज्ञात सिद्धांतों से तर्क वितर्क करें, अपने स्वयं के नए विचार या प्रश्न बनाएं, सभ्यता-संस्कृति के कई दृष्टिकोणों पर विचार करें, देश व समाज के विचारों या मतों की तुलना करें और बहस करें, ऐसी सीख इस सीरीज के माध्यम से दी जाती है। इसी कड़ी में उनके सोचने की प्रक्रिया के बारे में सोचना, विचार प्रक्रियाओं के प्रति जागरूक होना और छात्रों के बौद्धिक विकास और प्रगति के बारे में अधिक जानना महत्वपूर्ण होता है। 

लिहाजा, इसी कड़ी में छात्रों को यह समझाया जाता है कि लाइब्रेरी में जाने से उनकी शब्दावली, कल्पना और सीखने की इच्छाशक्ति कैसे बढ़ेगी। वहीं, लाइब्रेरी कार्ड बच्चों को उधार लेने और जिम्मेदारी की अवधारणाओं से परिचित कराने का एक शानदार तरीका है। इसलिए माता-पिता और अभिभावकों का यह दायित्व बनता है कि अपने बच्चे को संग्रहालयों, नए मोहल्लों और प्रदर्शनियों से सुपरिचित कराएं। अपने बच्चे के साथ जितना संभव हो सके उतना निर्बाध समय बिताएं। अपने घर में होमवर्क के लिए स्थान और दिनचर्या निर्धारित करें। यदि आप अपने बच्चे की प्रगति के बारे में चिंतित हैं तो अपने बच्चे के शिक्षक से बात करें। इसके अलावा, लंबे समय तक टेलीविजन, वीडियो और कंप्यूटर गेम देखने से बचें। 

वहीं, किशोरावस्था के छात्र-छात्राओं को स्कूल और घर में व्यक्तिगत निर्णय लेने पर केंद्रित अधिक जटिल सोच के उपयोग के बारे में बताइये। वह स्कूल के काम में औपचारिक तार्किक संक्रियाओं का उपयोग दिखाना कैसे शुरू करेगा, यह समझाइए। विद्यार्थी प्राधिकार और समाज के मानकों पर सवाल उठाना कैसे शुरू करेंगे, यह बतलाइए। उन्हें विभिन्न विषयों पर अपने विचार और दृष्टिकोण बनाना और बोलना शुरू करना सिखाईए। आप अपने बच्चे को इस बारे में बात करते हुए सुन सकते हैं कि उन्हें कौन से खेल या समूह पसंद हैं और माता-पिता के कौन से नियम बदलने चाहिए, इसलिए इसके समग्र पहलुओं के बारे में उन्हें सुसंगत दृष्टिकोण विकसित करना सिखाईए।

इस अवस्था में विद्यार्थी अधिक जटिल, दार्शनिक और भविष्यवादी चिंताओं को शामिल करने के लिए सोच का विस्तार करता है। इस नजरिए से उनके द्वारा अक्सर अधिक व्यापक रूप से प्रश्न पूछे जाते हैं और अधिक व्यापक रूप से विश्लेषण किया जाता है। लिहाजा, वह अपने स्वयं के आचार संहिता के बारे में सोचता है और उसे बनाना शुरू करता है? वह विभिन्न संभावनाओं के बारे में सोचता है और अपनी पहचान विकसित करना शुरू करता है। वह संभावित भावी लक्ष्यों पर व्यवस्थित रूप से विचार करना शुरू कर देता है। उसके मन तरंग में यह सवाल उठते हैं कि मैं क्या सही समझता हूँ? मैं कौन हूँ? मैं क्या चाहता हूँ? 

इस उम्र वय में विद्यार्थी कम आत्म-केंद्रित अवधारणाओं और व्यक्तिगत निर्णय लेने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जटिल सोच का उपयोग करता है। वह न्याय, इतिहास, राजनीति, ज्ञान-विज्ञान और देशभक्ति जैसी वैश्विक अवधारणाओं के बारे में विचारों में हुई वृद्धि पर डिस्कशन करता है। ऐसे में अक्सर विषयों पर आदर्शवादी विचार विकसित हो जाते हैं, जिससे बहस हो सकती है और विरोधी विचारों के प्रति असहिष्णुता विकसित हो सकती है। इसलिए उनके लिए उपयोगी सभी पहलुओं के बारे में विस्तार पूर्वक समझाइए, ताकि उनके व्यक्तित्व में सजगता और निखार दोनों आए। क्योंकि इस उम्र में छात्रगण कैरियर संबंधी निर्णय लेने और वयस्क समाज में उनकी उभरती भूमिका पर ध्यान केन्द्रित करना शुरू कर देते हैं। इसलिए उनके बौद्धिक विकास और प्रगति के बारे में अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाइए।

उनमें भविष्य की संभावनाओं के बारे में सोचने के लिए जिज्ञासा पैदा कीजिए। यहां पर उनके सुविचारित निर्णयों के लिए सराहना और प्रशंसा कीजिए। जबकि गलत तरीके से लिए गए निर्णयों का पुनर्मूल्यांकन करने में उनकी सहायता कीजिए। आपको पता होना चाहिए कि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनके सोचने-समझने का तौर तरीका और भी परिष्कृत होता जाता है। उनकी विचार प्रक्रियाएँ अधिक तार्किक और व्यवस्थित होती जाती हैं। इसलिए उनका समुचित मार्गदर्शन करना उनके बौद्धिक विकास के नितांत आवश्यक है। उनके स्वस्थ बौद्धिक विकास के लिए उन्हें विभिन्न विषयों, मुद्दों और समसामयिक घटनाओं पर चर्चा में शामिल करना होगा। जिससे उन्हें अपने विचार को सबके साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। यह उन्हें स्वतंत्र रूप से सोचने, अपने विचार विकसित करने तथा लक्ष्य निर्धारित करने के लिए भी मदद करेगा।

- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार