आपणी सांस्कृतिक विरासत नै भी अंगेजै अर संस्कारवान जीवण मांय भी सिरमौड़ है..

आपणी सांस्कृतिक विरासत नै भी अंगेजै अर संस्कारवान जीवण मांय भी सिरमौड़ है..

पोथी चरचा मोबाइल रौ चसकौ राजस्थानी भासा रा लूंठा रचनाकार अब्दुल समद राही रौ औ बाल उपन्यास 'मोबाइल रौ चसकौ' बाल साहित्य री गद्य विधा सारू अेक महताऊ पाउण्डौ पण मान सका।

 अेक कानी बाल साहित्य में सिरजण रौ तोटौ रैयौ है तौ बीजै कानी कविता, कहाणी सूं आगै बध‘र उपन्यास लिखणौ अंजसजोग काम है।

 इण उपन्यास मांय तकनीक रौ मिनख माथै हुवतै सकारात्मक अर नकारात्मक प्रभाव रौ सांगोपांग रूप अपां साम्ही लावै। तकनीक अेक कानी विनास रौ लूंठौ कारण बण सकै अर जे सावचेती बरतै तौ विकास रै मारग रौ कारण भी बण सकै।

 उपन्यास रौ सिरै पात्र 'अकसा' है जिण रै आसै-पासै औ उपन्यास रचिज्यौ है। अकसा हरेक छेतर मांय टॉप रेवै चाहै खेल हौ कै भणाई। आपणी सांस्कृतिक विरासत नै भी अंगेजै अर संस्कारवान जीवण मांय भी सिरमौड़ है।

 सांयना सारू रहनुमा भी है तौ अनुशासित जीवण रै महतब नै भी आपरै देस-परिवेस मांय थरपै। शारीरिक अर मानसिक विकास रै हरेक पख नै इण उपन्यास मांय अणूंती खामचाई साथै पात्रानुकूल अर ठावै टेम माथै राखै।

भूमिका मांय पवनजी पहाड़िया लिखै'क "इण उपन्यास में जठै लीक सूं हट'र कथ नै परोट्यौ है तौ सिल्प रौ आपरौ वैभव भी इण रचना में बिखेरियौ है। बाल मनोविग्यान री दीठ सूं औ उपन्यास अेक नूंवी जमीं थरपण री सवाई आफळ किन्ही है।" उषा रै मारफत मोबाइल रै चसका रौ नुकसाण माण्डै अर संयुक्त परिवार माथै हुवणवाळा नुकसाण रौ साख्यात चितराम उकेरै।

 अवेस रै मिस मोबाइल रै सदुपयोग री बात करै जिण सूं ऑनलाइन भणाई कर'र असंभव काम भी सरै। इण भांत तकनीक रै इस्तेमाल सारू सकारात्मक कै नकारात्मक प्रभाव री सगळी जिम्मेवारी उण टाबर रै परिवार वाळा री हुवै जको समै-समै माथै टाबरां नै सही मारग दिखावण रौ काम कर सकै।

बाल मनगत री दीठ सूं औ उपन्यास हदभांत सफल मान सका। उपन्यास री भासा सरल, सहज अर टाबरां रै स्तर सूं ठावी पण लखावै।

डॉ रामरतन लटियाल, मेड़ता कि कलम से