विकसित भारत को गढ़ने के संकल्पों का उद्बोधन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लालकिले की प्राचीर से 78वें स्वतंत्रता दिवस का अब तक का सबसे लम्बा 98 मिनट का 11वां राष्ट्रीय उद्बोधन एक विशाल एवं विराट इतिहास को समेटे हुए नये भारत के नये संकल्पों की बानगी है। जो आजादी के अमृतकाल को अमृतमय बनाने के लिये लोगों को ऊंचे सपने देखने, बड़े लक्ष्य निर्धारित करने के लिए प्रेरित कर रहा है। प्रधानमंत्री ने वर्तमान की वैश्विक एवं राजनैतिक चुनौतियों को भविष्य की अपनी दृष्टि पर हावी नहीं होने दिया। यह उद्बोधन भारत की भावी दशा-दिशा रेखांकित करते हुए उसे विश्व गुरु बनाने एवं दुनिया की आर्थिक महाताकत बनाने का आह्वान है। यह शांति का उजाला, समृद्धि का राजपथ, उजाले का भरोसा एवं महाशक्ति बनने का संकल्प है। लालकिले से जब देश का प्रधानमंत्री बोलता है तो वह भारत के महान लोकतंत्र की उस आत्मा को साकार करता है जो इस देश के 140 करोड़ देशवासियों के भीतर बसती है। प्रधानमंत्री मोदी के सम्बोधन को वास्तविकता की रोशनी में नये भारत-सशक्त भारत-विकसित भारत के रूप में देखा जाना चाहिए। धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता को जरूरी बताने के साथ-साथ प्रधानमंत्री ने प्राकृतिक आपदा से लेकर रिफार्म्स तक, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों से लेकर गवर्नेस मॉडल, रोजगार, व्यापार, रक्षा, चिकित्सा समेत कई विषयों की चर्चा की। उन्होंने न्यायिक सुधारों पर आगे बढ़ने का भी संकेत दिया। इसके साथ ही वह विपक्ष को निशाना बनाने से नहीं चूके और सरकार का एजेंडा उन्होंने पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है। निश्चित ही अब तक हुए लालकिले की प्राचीर के उद्बोधनों में सर्वाधिक प्रेरक, संकल्पमय एवं विकसित भारत की इबारत लिखने वाला यह उद्बोधन रहा। अंधेरों को चीर कर उजाला की ओर बढ़ते भारत की महान यात्रा के लिये सबके जागने, संकल्पित होने एवं आजादी के अमृतकाल काल को अमृतमय बनाने के लिये दृढ़ मनोबली महानायक का आह्वान है। प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल में खास एवं ऐतिहासिक होने की अनुगूंजें इस उद्बोधन में साफ सुनाई दी, जैसाकि उनके पूर्व के दो कार्यकाल इस लिहाज खास रहे हैं कि उनकी पार्टी के जिन लक्ष्यों को राजनीति की अन्य धाराएं लगभग नामुमकिन मानती थीं, उन्हें देश के एजेंडा का हिस्सा बनाते हुए हासिल कर लिया गया। चाहे वह अयोध्या में राममंदिर बनाने की बात हो या अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को हासिल विशेष दर्जा खत्म करने की। तीसरे कार्यकाल में ऐसा ही एक और लक्ष्य है कॉमन सिविल कोड जो राष्ट्रीय स्तर पर लागू होना बाकी है। मोदी ने धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता के रूप में इसका जिक्र करके यह संकेत दिया है कि इसे देशवासियों के लिए स्वीकार्य बनाना और लागू करना उनकी सरकार की प्राथमिकता में काफी ऊपर है। उनके शब्दों में मौजूदा सिविल कोड एक तरह से साम्प्रदायिक नागरिक संहिता है। देश को ऐसे सिविल कोड की जरूरत है, जिससे धर्म के आधार पर भेदभाव से मुक्ति मिले। जब देश में अधिकतर मामलों में नागरिकों पर एक समान कानून लागू होते हैं तो फिर अलग-अलग धर्मों के अपने अलग-अलग लॉ भारत के संविधान पर सवालिया निशान लगाते दिखाई दे रहे हैं। मोदी देश में बार-बार होने वाले चुनावों को विकास की राह में बाधा मानते हैं और यह कोशिश करते रहे हैं कि पूरे देश में एक साथ चुनाव होने लगें। लेकिन हालिया लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें कम होने के बाद उनकी पार्टी और सरकार का यह अजेंडा आगे बढ़ना मुश्किल भले ही माना जा रहा हो, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में इसका भी जिक्र करते हुए यह संकेत दिया कि इस दिशा में उनकी सरकार के प्रयास जारी रहेंगे। इन सबके साथ ही प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की खास उपलब्धियों और उसके सामने मौजूद चुनौतियों का जिक्र करना नहीं भूले। इसे भी पढ़ें: मोदी की एक लाख युवाओं को राजनीति में लाने के पीछे की क्या है मंशाअनेक विशेषताओं एवं विलक्षणताओं वाले इस बार के उद्बोधन एवं स्वतंत्रता दिवस समारोह की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि विकसित भारत के लक्ष्य को सामने रखा गया, उससे यही स्पष्ट हुआ कि वह अपने इस एजेंडे को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने के बाद भी वह अपने लक्ष्य से डिगे नहीं हैं। इसका पता इससे चलता है कि उन्होंने आंतरिक और बाहरी चुनौतियों की चर्चा करते समय बांग्लादेश के हालात का भी जिक्र किया और वहां के हिंदुओं एवं अल्पसंख्यकों को लेकर भी अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने एक ओर जहां जातिवाद और परिवारवाद की राजनीति पर प्रहार किया, वहीं दूसरी ओर कोलकाता की दिल दहलाने वाली घटना को ध्यान में रखते हुए नारी सुरक्षा की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने यह कहकर देश की राजनीति में व्यापक परिवर्तन लाने की भी पहल की कि आने वाले समय में एक लाख ऐसे युवाओं को अपनी पसंद के राजनीतिक दलों में सक्रिय होना चाहिए, जिनके परिवार के लोग पहले कभी राजनीति में न रहे हों। निश्चित ही भारतीय राजनीति को परिवारवाद से मुक्ति एवं नए विचारों और नई ऊर्जा से ओतप्रोत युवा नेताओं की आवश्यकता है।यह ऐतिहासिक उद्बोधन कोरा राजनीतिक उद्बोधन न होकर राष्ट्रीयता को समृद्ध एवं शक्तिशाली बनाने का सशक्त आह्वान है जो इस बात विश्लेषण करता है कि हम कहां से कहां तक पहुंच गए। अंतरिक्ष हो या समंदर, धरती हो या आकाश, देश हो या दुनिया आज हर जगह भारत का परचम फहरा रहा है, भारत ने जितनी प्रगति की है उसे देखकर हर देशवासी को भारतीय होने का गर्व हो रहा है तो इसका श्रेय मोदी को दिया जाना कोई अतिश्योक्ति नहीं है, इसकी चर्चा करना राजनीतिक नहीं, भारत की सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक समृद्धि का बखान है। हर भारतवासी मोदी के उद्बोधन से इसलिये भी प्रेरित एवं प्रभावित हुए है कि ‘मिशन मोड’ पर ‘ईज ऑफ लिविंग’ को पूरा करने के अपने दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए उसे आगे बढ़ा रहे है। उन्होंने व्यवस्थित मूल्यांकन, बुनियादी ढांचे और सेवाओं में सुधार के माध्यम से शहरी क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने की बहुत जरूरी बात कही है। उन्

विकसित भारत को गढ़ने के संकल्पों का उद्बोधन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लालकिले की प्राचीर से 78वें स्वतंत्रता दिवस का अब तक का सबसे लम्बा 98 मिनट का 11वां राष्ट्रीय उद्बोधन एक विशाल एवं विराट इतिहास को समेटे हुए नये भारत के नये संकल्पों की बानगी है। जो आजादी के अमृतकाल को अमृतमय बनाने के लिये लोगों को ऊंचे सपने देखने, बड़े लक्ष्य निर्धारित करने के लिए प्रेरित कर रहा है। प्रधानमंत्री ने वर्तमान की वैश्विक एवं राजनैतिक चुनौतियों को भविष्य की अपनी दृष्टि पर हावी नहीं होने दिया। यह उद्बोधन भारत की भावी दशा-दिशा रेखांकित करते हुए उसे विश्व गुरु बनाने एवं दुनिया की आर्थिक महाताकत बनाने का आह्वान है। यह शांति का उजाला, समृद्धि का राजपथ, उजाले का भरोसा एवं महाशक्ति बनने का संकल्प है। लालकिले से जब देश का प्रधानमंत्री बोलता है तो वह भारत के महान लोकतंत्र की उस आत्मा को साकार करता है जो इस देश के 140 करोड़ देशवासियों के भीतर बसती है। प्रधानमंत्री मोदी के सम्बोधन को वास्तविकता की रोशनी में नये भारत-सशक्त भारत-विकसित भारत के रूप में देखा जाना चाहिए। धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता को जरूरी बताने के साथ-साथ प्रधानमंत्री ने प्राकृतिक आपदा से लेकर रिफार्म्स तक, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों से लेकर गवर्नेस मॉडल, रोजगार, व्यापार, रक्षा, चिकित्सा समेत कई विषयों की चर्चा की। उन्होंने न्यायिक सुधारों पर आगे बढ़ने का भी संकेत दिया। इसके साथ ही वह विपक्ष को निशाना बनाने से नहीं चूके और सरकार का एजेंडा उन्होंने पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है। निश्चित ही अब तक हुए लालकिले की प्राचीर के उद्बोधनों में सर्वाधिक प्रेरक, संकल्पमय एवं विकसित भारत की इबारत लिखने वाला यह उद्बोधन रहा। अंधेरों को चीर कर उजाला की ओर बढ़ते भारत की महान यात्रा के लिये सबके जागने, संकल्पित होने एवं आजादी के अमृतकाल काल को अमृतमय बनाने के लिये दृढ़ मनोबली महानायक का आह्वान है। 

प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल में खास एवं ऐतिहासिक होने की अनुगूंजें इस उद्बोधन में साफ सुनाई दी, जैसाकि उनके पूर्व के दो कार्यकाल इस लिहाज खास रहे हैं कि उनकी पार्टी के जिन लक्ष्यों को राजनीति की अन्य धाराएं लगभग नामुमकिन मानती थीं, उन्हें देश के एजेंडा का हिस्सा बनाते हुए हासिल कर लिया गया। चाहे वह अयोध्या में राममंदिर बनाने की बात हो या अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को हासिल विशेष दर्जा खत्म करने की। तीसरे कार्यकाल में ऐसा ही एक और लक्ष्य है कॉमन सिविल कोड जो राष्ट्रीय स्तर पर लागू होना बाकी है। मोदी ने धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता के रूप में इसका जिक्र करके यह संकेत दिया है कि इसे देशवासियों के लिए स्वीकार्य बनाना और लागू करना उनकी सरकार की प्राथमिकता में काफी ऊपर है। उनके शब्दों में मौजूदा सिविल कोड एक तरह से साम्प्रदायिक नागरिक संहिता है। देश को ऐसे सिविल कोड की जरूरत है, जिससे धर्म के आधार पर भेदभाव से मुक्ति मिले। जब देश में अधिकतर मामलों में नागरिकों पर एक समान कानून लागू होते हैं तो फिर अलग-अलग धर्मों के अपने अलग-अलग लॉ भारत के संविधान पर सवालिया निशान लगाते दिखाई दे रहे हैं। मोदी देश में बार-बार होने वाले चुनावों को विकास की राह में बाधा मानते हैं और यह कोशिश करते रहे हैं कि पूरे देश में एक साथ चुनाव होने लगें। लेकिन हालिया लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें कम होने के बाद उनकी पार्टी और सरकार का यह अजेंडा आगे बढ़ना मुश्किल भले ही माना जा रहा हो, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में इसका भी जिक्र करते हुए यह संकेत दिया कि इस दिशा में उनकी सरकार के प्रयास जारी रहेंगे। इन सबके साथ ही प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की खास उपलब्धियों और उसके सामने मौजूद चुनौतियों का जिक्र करना नहीं भूले। 

इसे भी पढ़ें: मोदी की एक लाख युवाओं को राजनीति में लाने के पीछे की क्या है मंशा

अनेक विशेषताओं एवं विलक्षणताओं वाले इस बार के उद्बोधन एवं स्वतंत्रता दिवस समारोह की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि विकसित भारत के लक्ष्य को सामने रखा गया, उससे यही स्पष्ट हुआ कि वह अपने इस एजेंडे को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने के बाद भी वह अपने लक्ष्य से डिगे नहीं हैं। इसका पता इससे चलता है कि उन्होंने आंतरिक और बाहरी चुनौतियों की चर्चा करते समय बांग्लादेश के हालात का भी जिक्र किया और वहां के हिंदुओं एवं अल्पसंख्यकों को लेकर भी अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने एक ओर जहां जातिवाद और परिवारवाद की राजनीति पर प्रहार किया, वहीं दूसरी ओर कोलकाता की दिल दहलाने वाली घटना को ध्यान में रखते हुए नारी सुरक्षा की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने यह कहकर देश की राजनीति में व्यापक परिवर्तन लाने की भी पहल की कि आने वाले समय में एक लाख ऐसे युवाओं को अपनी पसंद के राजनीतिक दलों में सक्रिय होना चाहिए, जिनके परिवार के लोग पहले कभी राजनीति में न रहे हों। निश्चित ही भारतीय राजनीति को परिवारवाद से मुक्ति एवं नए विचारों और नई ऊर्जा से ओतप्रोत युवा नेताओं की आवश्यकता है।

यह ऐतिहासिक उद्बोधन कोरा राजनीतिक उद्बोधन न होकर राष्ट्रीयता को समृद्ध एवं शक्तिशाली बनाने का सशक्त आह्वान है जो इस बात विश्लेषण करता है कि हम कहां से कहां तक पहुंच गए। अंतरिक्ष हो या समंदर, धरती हो या आकाश, देश हो या दुनिया आज हर जगह भारत का परचम फहरा रहा है, भारत ने जितनी प्रगति की है उसे देखकर हर देशवासी को भारतीय होने का गर्व हो रहा है तो इसका श्रेय मोदी को दिया जाना कोई अतिश्योक्ति नहीं है, इसकी चर्चा करना राजनीतिक नहीं, भारत की सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक समृद्धि का बखान है। हर भारतवासी मोदी के उद्बोधन से इसलिये भी प्रेरित एवं प्रभावित हुए है कि ‘मिशन मोड’ पर ‘ईज ऑफ लिविंग’ को पूरा करने के अपने दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए उसे आगे बढ़ा रहे है। उन्होंने व्यवस्थित मूल्यांकन, बुनियादी ढांचे और सेवाओं में सुधार के माध्यम से शहरी क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने की बहुत जरूरी बात कही है। उन्होंने भारत में जीवन को आसान बनाने की अपेक्षा की, ताकि अमीरों एवं युवा प्रतिभाओं के पलायन को रोका जा सके। मोदी ने देश की जनता में जोश एवं संकल्प जगाते हुए ऐसा ही कुछ कहा जो जीवन की अपेक्षा को न केवल उद्घाटित करता है, बल्कि जीवन की सच्चाइयों को परत-दर-परत खोलकर रख देते हैं।

‘विकसित भारत’ की थीम के साथ इस वर्ष का स्वतंत्रता दिवस उद्बोधन भारत की भावी दशा-दिशा को रेखांकित करते हुए कह रहा है कि देश किन्हीं समस्याओं पर थमे नहीं, रूके नहीं, क्योंकि समाधान तलाशते हुए आगे बढ़ना ही जीवंत एवं विकसित देश की पहचान होती है। इसके लिये जो अतीत के उत्तराधिकारी और भविष्य के उत्तरदायी है, उनको दृढ़ मनोबल और नेतृत्व का परिचय देना होगा, पद, पार्टी, पक्ष, प्रतिष्ठा एवं पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर। यही भावना सबल सक्षम और समरस राष्ट्र बनाएगी और विश्व में भारत का मान बढ़ाएगी, इसी से भारत विश्वगुरु बनेगा। हम भारत के लोग विश्व मंगल की कामना की पूर्ति तभी अच्छे से कर सकते हैं जब पहले राष्ट्र मंगल की भावना से ओतप्रोत हों। तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत ने पिछले 78 वर्षों में जो प्रगति की उडान अपनी विविधता को संजाये हुए भरी है उससे पूरी दुनिया हैरत में है। बड़े-बड़े देश अब भारत के लोगों के विकास, ज्ञान और उनकी मेहनत के दीवाने हैं। दुनिया के हर कोने में भारतीय अपना झंडा गाड़ रहे हैं। उन्होंने देशवासियों से परिवारवाद, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण के खिलाफ लड़ने का आह्वान भी किया क्योंकि ये गरीब, पिछड़े, आदिवासियों और दलितों का हक छीनते हैं। उन्होंने नवाचार के इच्छुक उद्यमियों को विशेष रूप से संबोधित किया गया। भारत का निर्यात बढ़ना जरूरी है और इसके लिए ऐसे उत्पाद बनाने की जरूरत है, जिनकी विश्व स्तर पर मांग हो। देश में चिकित्सा शिक्षा को बढ़ाने के मकसद से अगले पांच वर्षों में 75000 नई मेडिकल सीटें जोड़ने की घोषणा महत्वपूर्ण है। ऐसी ही घोषणाओं से भारत एक आत्मविश्वासी राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित हो सकेगा।

- ललित गर्ग
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार