प्रहलाद सिंह झोरड़ा साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित..
ताम्रफलक एवं 50000 की राशि भेंट कर किया सम्मान अपनी मातृभाषा की मान्यता हेतु उठाई आवाज "ताळो जड़ियो क्यों म्हारी वाणी रै" गीत के माध्यम से किया सबका ध्यान आकर्षित किया।
नागौर। मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार के साहित्यिक उपक्रम साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की ओर से उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में गुरुवार शुक्रवार को आयोजित भव्य समारोह में "राजस्थानी के युवा गीतकार प्रहलाद सिंह झोरड़ा" को वर्ष 2024 के राजस्थानी बालसाहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उन्हें यह पुरस्कार उनकी काव्यकृति "म्हारी ढाणी" के लिए दिया गया। पुरस्कार स्वरूप ताम्रफलक एवं 50000/-राशि का चैक साहित्य अकादेमी अध्यक्ष माधव कौशिक द्वारा भेंट किया गया। पुरस्कार के बाद साहित्यकार सम्मिलन- समारोह में तमाम भारतीय भाषाओं के बालसाहित्यकारों के साथ प्रहलाद सिंह झोरड़ा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बाल साहित्य एवं उसकी रचना प्रक्रिया के साथ उसकी उपादेयता पर प्रकाश डाला।
इस दौरान उन्होंने केंद्रीय प्रतिनिधियों के समक्ष अपनी मातृभाषा राजस्थानी की मान्यता हेतु अपना पक्ष रखा तथा मान्यता की प्रबल पैरवी की।
उन्होंने अपनी चिरपरिचित काव्यात्मक शैली में मधुर रागिनी छेड़ते हुए जब "ताळो जड़ियो क्यूं म्हारी वाणी रै, म्हारी ओळख हेमांणी रे, पीढ्यां री अमर निसाणी रै" गीत प्रस्तुत किया तो पांडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। बालसाहित्य की महत्ता पर बोलते हुए श्री सिंह ने कहा कि "ऐसा कहा जाता है कि बालक कच्ची मिट्टी के समान होता है, जिसे जैसा चाहें वैसा आकार दिया जा सकता है
लेकिन प्रश्न यह है कि वह वांछित आकर देगा कौन?
आज के दौर में जब माता-पिता के पास बालक के लिए समय नहीं है, गुरुजनों के पास बालक के लिए निश्चित लक्ष्य नहीं है, समाज स्वयं दिशाविहीन होता जा रहा है।
तब कैसे एवं किसके द्वारा इस कच्ची मिट्टी को अपेक्षित आकार दिया जा सकता है? इस प्रश्न का उत्तर हम बाल साहित्यकारों को सोचना होगा।
चूंकि साहित्य समाज का दर्पण होता है और समाज को दिशा देने का काम करता है, इसलिए हमें अपना दायित्व बखूबी निभाते हुए इस कच्ची मिट्टी को वांछित आकार देने में अपना योगदान देना होगा। उन्होंने आगे कहा कि विडम्बना है कि आज हम आधुनिकता की भागदौड़ भरी जिंदगी में अपना उज्ज्वल इतिहास, स्वर्णिम संस्कृति, संस्कार, रीति-रिवाज, परिवेश, भाषा एवं नैतिक मूल्यों को भूलकर दिशाविहीन होते जा रहे है।
इसका दुष्परिणाम हमारे बाल वर्ग को भुगतना पड़ रहा है। इसलिए हमें ऐसे बाल साहित्य सृजन पर ध्यान केन्द्रित करना होगा जिससे हम अपनी संस्कृति व नैतिक मूल्यों को सहेजते हुए बाल वर्ग को संस्कारित कर सकें।
श्री प्रह्लाद सिंह झोरड़ा को मिले इस सम्मान से नागौर के साहित्यिक समाज में खुशी की लहर है।
वरिष्ठ कवि लक्ष्मणदान कविया, पवन पहाड़िया, राजेश विद्रोही, डॉ. गजादान चारण, हेमंत उज्ज्वल, श्रीराम वैष्णव, सुखदेव सिंह गाडण, सत्यपाल सांदू, विशनसिंह कविया, सांवल दान कविया, मेहराम धोलिया, रामरतन लटियाल, फत्तूराम छाबा, सत्येन्द्र झोरड़ा ने हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं संप्रेषित की। उक्त जानकारी वरिष्ठ राजस्थानी साहित्यकार पवन पहाड़िया 'डेह' ने दी।
वरिष्ठ संवाददाता अब्दुल समद राही कि रिपोर्ट