पं. मधुकर गौड़ राजस्थानी सार्थक साहित्य सम्मान पवन पहाड़िया को..

पं. मधुकर गौड़ राजस्थानी सार्थक साहित्य सम्मान पवन पहाड़िया को..

यह मेरा नहीं मायड़भाषा राजस्थानी का सम्मान है- पवन पहाड़िया नई कविता के नाम पर सही कविता से दूरी चिंताजनक - डाॅ. गजादान चारण

 चूरू/नागौर। राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ कवि, निबंधकार, समालोचक, संपादक एवं अुनवादक पवन पहाड़िया को पं. मधुकर गौड़ सार्थक साहित्य संस्थान, मुंबई की ओर से वर्ष 2024 के पं. मधुकर गौड़ राजस्थानी सार्थक साहित्य से अलंकृत किया किया।

चूरू के नगरश्री संस्थान में रविवार को आयोजित भव्य साहित्यिक समारोह में नगर के साहित्यकार एवं भाषा-साहित्य प्रेमियां की उपस्थिति में श्री पहाड़िया को श्रीफळ, शाॅल, पुष्पहार, मानपत्र एवं 21000 पुरस्कार राशि भेंट कर यह सम्मान प्रदान किया गया।

इस अवसर पर श्री पवन पहाड़िया ने कहा कि यह सम्मान मेरा नहीं मेरी मायड़भाषा राजस्थानी का सम्मान है। उन्होंने कहा कि जन्म देने वाली माँ के समान ही मातृभूमि एवं मातृभाषा भी उनती ही सम्माननीय होती है।

 हमारा दायित्व है कि हम अपनी मातृभाषा के संवर्द्धन एवं विकास के सहभागी बनें। राजस्थानी बोलने में गर्व की अनुभूति करें। विवाह-शादी के निमंत्रण पत्र तथा अन्य पत्र-व्यवहार राजस्थानी में करें। दुकानों एवं प्रतिष्ठानों पर नाम राजस्थानी में लिखें।

उन्होंने पं. मधुकर गौड़ की साहित्य साधना एवं मातृभाषा प्रेम की सराहना की तथा उनसे जुड़े रोचक प्रसंग सुनाकर श्रोतामंडल को गदगद किया।

श्री पहाड़िया का परिचय देते हुए कार्यक्रम संयोजक राजेन्द्र शर्मा मुसाफिर ने बताया कि पहाड़िया जी राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन रा सबल सिपाही, कलम के कारीगर एवं जीवट व्यक्तित्व के धनी हैं, जिन पर मां सरस्वती एवं वैभवलक्ष्मी दोनों की समान रूप से कृपा बरसती है।

 उन्होंने बताया कि श्री पहाड़िया की आज तक कविता, कहानी, अनुवाद, संपादन एवं बालसाहित्य की 22 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

 वे सतत साहित्य सृजनरत रहते हैं। कार्यक्रम अध्यक्ष एवं राजस्थानी प्रगतिशील चेतना के अग्रणी साहित्यकार श्री श्याम महर्षि ने पं. मधुकर गौड़ एवं पवन पहाड़िया दोनों के साहित्यिक अवदान की सराहना करते हुए कहा कि मधुकर गौड़ ने प्रदेश से बाहर रह कर वर्षों तक मातृभाषा की सेवा की तथा पवन पहाड़िया राजस्थान में रहकर अपने मौलिक लेखन के साथ ही मातृभाषा मान्यता हेतु जमीनी माहौल बनाने का सराहनीय कार्य कर रहे हैं।

 उन्होंने राजस्थानी भाषा की मान्यता एवं उससे जुड़े विभिन्न मुद्दों पर व्यावहारिक बातें बताते हुए इस विषय को जन आंदोलन बनाने की बात पर बल दिया। श्री महर्षि ने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में पुरस्कार देने की परम्परा राजस्थान में बहुत पहले से रही है तथा यहां लाख पसाव एवं करोड़ पसाव दिए जाने के उल्लेख एवं ताम्रपत्र मिलते हैं।

उन्होंने पं. मधुकर गौड़ के हिंदी एवं राजस्थानी पत्रकारिता विषयक अवदान को याद करते हुए सार्थक एवं मरुधारा पत्रिका से जुड़ी जानकारियां दीं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं साहित्यविद डाॅ. गजादान चारण ने कहा कि पं. मधुकर गौड़ एवं पवन पहाड़िया दोनों ही राजस्थानी छंदोबद्ध काव्यधारा के व्यक्ति हैं। इस क्षेत्र में इन दोनों को योगदान प्रशंसनीय है।

 डाॅ. चारण ने कहा कि छंद में अमरत्व प्रदान करने की ताकत है, यह देव-वसन कहलाता है। छंद नाम ही नियम एवं अनुशासन का है, जो नीति, मर्यादा एवं मूल्यों का पाठ पढ़ाता है। यही कारण है कि राजस्थानी छंदों ने इतिहास के धारे एवं भूगोल के किनारे बदलने का काम किया है।

आज नई कविता के नाम पर सही कविता को नकारने का षड़यंत्र चल रहा है, जो साहित्यिक समाज के लिए अतीव पीड़ादायक है। डाॅ. चारण ने कहा कि राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता मिलनी निश्चित है, इसे अब अधिक समय तक रोकना सरकारों के वश की बात नहीं है किंतु यदि हमारे घरों में तथा आपसी बोलचाल में राजस्थानी का व्यवहार बंद हो गया या हमें राजस्थानी बोलने में हीनता का अनुभव होने लगा तो फिर मान्यता का भी कोई फायदा नहीं मिलने वाला है।

 अतः हर राजस्थानी को राजस्थानी बोलने हेतु दृढ़संकल्पित रहना चाहिए। कार्यक्रम में श्रीमती सविता शर्मा एवं कविता इन्दोरिया ने अपने पिता मधुकर गौड़ के व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाश डाला।

कमलेश गौड़ ने सबका आभार ज्ञापित किया। श्री पहाड़िया को मिले इस पुरस्कार से नागौर के साहित्यिक समाज में खुशी का माहौल है।

 वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मणदान कविया, डाॅ. गजादान चारण, सुखदेवसिंह गाडण, प्रहलादसिंह झोरड़ा, सत्यपाल सांदू, सांवलदान कविया, गोविंद सिंह खेण, फतूराम छाबा ने उन्हें हार्दिक बधाइयां देते हुए खुशियां मनाई।

 वरिष्ठ संवाददाता अब्दुल समद राही की रिपोर्ट