आचार्य माधव शास्त्री जी कि कलम से..
श्रीमद्भगवद्गीता
निरन्तर..... ध्यान में भी भटकाव उत्पन्न हो जाता है "ध्यायतो विषयान् पुंस: सङ्ग तेषूपजायते" विषयों का ध्यान आ जाने पर विषयों के प्रति संग उत्पन्न हो जाता है।
अतः आसन पर विराजमान होने के पहले सबसे पहले अपना ध्यान भोजन की प्रकृति पर देना चाहिए ये भी तीन प्रकार के होते हैं तामसिक आहार,राजसिक आहार और सात्विक आहार इनका उपयोग अपनी प्रकृति के अनुसार होता है ।
इसलिए यह पहचान आवश्यक है कि मेरे आहार की प्रकृति कैसी है बासी, सड़ा, मांसाहारी, और दुर्गन्धित आहार तामसिक।नमकीन, तैलीय, लूका,सुरा और अनेकों प्रकार के मिष्ठान आहार राजसिक आहार और न ज्यादा तीखा न मीठा,दूध,न अधिक खाना और न कम खाना अर्थात् आहार की मात्रा समान होना सात्विक आहार माना गया है ।
अतः ध्यान करने वाले को चाहिए कि सात्विक आहार का ही आश्रय लेकर शरीर को साधना चाहिए क्योंकि आहार से ही मन में राक्षसी, दैत्य, मानवीय और दैवीय शक्तियों का जागरण सम्भव है।
यदि भोजन ठीक है तो दैवीय शक्तियां सहायता करती हैं क्योंकि हमारे शरीर की प्रकृति सात्विक ही होती है उसको जीभ के लोभ के कारण नरक में पटक दिया करते हैं।
निरन्तर..२
आचार्य माधव शास्त्री जी कि कलम से