Auron Mein Kahan Dum Tha Review: अजय देवगन और तब्बू की क्लासिक जोड़ी के बावजूद फिल्म नहीं बन पायी मजेदार

अजय देवगन और तब्बू की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'औरों में कहा दम था' (Auron Mein Kahan Dum Tha) आखिरकार आज यानी 2 अगस्त 2024 को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। तब्बू और अजय देवगन के होने के बाद भी यह फिल्म उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। अजय देवगन और तब्बू की सबसे पसंदीदा ऑनस्क्रीन जोड़ी और निर्देशक नीरज पांडे के साथ उनका तालमेल भी प्रभावित करने में विफल रहा क्योंकि फिल्म की कहानी काफी हद तक अनुमानित और सपाट है। औरों में कहा दम था की कहानी, अभिनय और निर्देशन की पेचीदगियों को समझने के लिए नीचे पूरी समीक्षा पढ़ें। इसे भी पढ़ें: Marvel Movies की Avengers: Doomsday की घोषणा के बाद खुश हुए फैंस, Robert Downey Jr को मिले 1.2 मिलियन नए फॉलोअर्सकहानीफिल्म की कहानी कृष्णा (अजय देवगन द्वारा अभिनीत) नाम के एक व्यक्ति से शुरू होती है जो जेल में अपने दिन बिताता है। यह आदमी बार-बार फ्लैशबैक में जाता है और अपने अतीत के बारे में सोचता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, कृष्णा का अपराध सामने आता है और इसके साथ ही उसकी 22 साल पुरानी प्रेम कहानी भी सामने आती है, जिसमें कृष्णा अपने गांव से मुंबई आता है और वसुधा (तब्बू द्वारा अभिनीत) नाम की लड़की से प्यार करने लगता है। इसे भी पढ़ें: Stree 2 की रिलीज के साथ ही दिखाया जाएगा Bhool Bhulaiyaa 3 का टीजर, मध्य प्रदेश के ओरछा में शूट हुई है Kartik Aaryan की हॉरर कॉमेडी इसके बाद फिल्म में शांतनु माहेश्वरी और सई मांजरेकर युवा कृष्णा और वसुधा की भूमिका में नजर आते हैं। एक दुर्घटना होती है जिसे फ्लैशबैक में तीन बार दिखाया जाता है, इसमें न तो कोई नया एंगल है और न ही कोई ट्विस्ट। दुर्घटना के बाद कृष्णा को जेल भेज दिया जाता है। इसी बीच वसुधा किसी और से शादी कर लेती है जिसका नाम अभिजीत (जिमी शेरगिल द्वारा अभिनीत) है जो कृष्णा की तरह ही वसुधा से प्यार करता है। मन में असुरक्षा की भावना होने के बावजूद वह कृष्णा को जेल से बाहर निकालता है। कहानी के अंत में दुर्घटना से जुड़ा एक ऐसा सच सामने आता है जो काफी हद तक अनुमानित है। इसके बाद कृष्णा नई जिंदगी शुरू करने के लिए देश छोड़ देता है जबकि वसुधा अपनी बाकी जिंदगी अपने पति के साथ बिताती है।निर्देशननीरज पांडे ने न सिर्फ फिल्म का निर्देशन किया है बल्कि इसकी पटकथा भी लिखी है। एक घिसी-पिटी कहानी दिखाई गई है जिसे आपने बड़े पर्दे पर कई बार बेहतर तरीके से देखा होगा। इससे पहले नीरज ने खुलासा किया था कि उन्होंने इस कहानी को 11 साल तक सहेज कर रखा था जिससे फिल्म से और उम्मीदें बंधी थीं लेकिन बिना किसी रोमांच के यह अधूरी प्रेम कहानी आपको निराश करती है। फिल्म की कहानी ही इसकी सबसे कमजोर पेशकश है।अभिनयअभिनय की बात करें तो अजय का किरदार एक दुखी और सच्चे प्रेमी के रूप में दिखाया गया है। अजय एक अच्छे अभिनेता हैं, लेकिन इस फिल्म में उनके लिए कुछ भी नया नहीं था, न ही एक्शन और न ही रोमांस। उनके ज्यादातर सीन बार-बार फ्लैशबैक में चले जाते हैं और पुरानी यादों में खोया उनका किरदार काफी कमजोर लगता है। अपनी अच्छी एक्टिंग के बावजूद भी वे इस किरदार को बखूबी पेश नहीं कर पाए हैं। इसे उनके करियर की सबसे कमजोर परफॉर्मेंस में से एक भी कहा जा सकता है। अजय देवगन के साथ-साथ तब्बू भी पूरी फिल्म में सिर्फ दो जोड़ी कपड़ों में नजर आती हैं।दूसरी तरफ, तब्बू के पास भी इस फिल्म में करने के लिए कुछ खास नहीं है। हालांकि वे दुख और दर्द के भाव को दिखाने में सफल रहीं, लेकिन उनका किरदार प्रभावी नहीं रहा। फिल्म में जिमी शेरगिल का रोल काफी छोटा है और इंटरवल के बाद कहानी में आता है और लोगों को लगता है कि वे कहानी में रोमांच भर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं होता। अगर उनका किरदार थोड़ा लंबा होता तो कहानी को और बेहतर तरीके से स्थापित किया जा सकता था। युवा कृष्ण और वसुधा के रूप में नजर आने वाले शांतनु माहेश्वरी और सई मांजरेकर के कुछ सीन फिल्म में अच्छे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि दोनों ही फिल्म की कहानी को अपने कंधों पर लेकर चल रहे हैं। शांतनु ने एक अच्छे व्यवहार वाले लड़के का किरदार निभाया है, लेकिन हल्के-फुल्के एक्शन सीन भी उन पर सूट नहीं करते। उनकी चॉकलेट बॉय वाली छवि यहां भी बरकरार है।सई की एक्टिंग तारीफ के काबिल है। उन्हें मराठी होने का पूरा फायदा मिला है क्योंकि फिल्म में उनका किरदार भी मराठी लड़की का है। शांतनु और सई के बीच की केमिस्ट्री भी अच्छी है, बस एक बात खटकती है कि उनके सीन बार-बार रिपीट होते हैं। कहानी में सबसे दमदार किरदार सिर्फ एक है जिसका नाम जिग्नेश है। इस किरदार को जय उपाध्याय ने निभाया है। अजय देवगन के दोस्त के रोल में वे लोगों को हंसाने में सफल रहे।गाने'किसी रोज...' और 'ऐ दिल जरा...' गाने अच्छे हैं। सिनेमेटोग्राफी के मोर्चे पर कैमरा हैंडलिंग शानदार है। समुद्र को दिखाते हुए लंबे शॉट प्रभावी हैं। यह कहा जा सकता है कि गाने और सिनेमेटोग्राफी कुछ हद तक फिल्म को बांधे रखती है।कैसी है फिल्म?बिना शर्त के प्यार और त्याग की कहानी बहुत कमज़ोर है। औरों में कहाँ दम था देखने लायक नहीं है क्योंकि यह सिनेमा प्रेमियों के लिए एक क्लिच है जो हर फिल्म में कुछ नया तलाशते हैं। हम इस फिल्म को पाँच में से सिर्फ़ 2 स्टार दे रहे हैं।फिल्म का नाम: औरों में कहां दम थाआलोचकों की रेटिंग: 2/5रिलीज़ की तारीख: 2 अगस्त, 2024निर्देशक: नीरज पांडेशैली: रोमांटिक थ्रिलर

Auron Mein Kahan Dum Tha Review: अजय देवगन और तब्बू की क्लासिक जोड़ी के बावजूद फिल्म नहीं बन पायी मजेदार
अजय देवगन और तब्बू की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'औरों में कहा दम था' (Auron Mein Kahan Dum Tha) आखिरकार आज यानी 2 अगस्त 2024 को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। तब्बू और अजय देवगन के होने के बाद भी यह फिल्म उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। अजय देवगन और तब्बू की सबसे पसंदीदा ऑनस्क्रीन जोड़ी और निर्देशक नीरज पांडे के साथ उनका तालमेल भी प्रभावित करने में विफल रहा क्योंकि फिल्म की कहानी काफी हद तक अनुमानित और सपाट है। औरों में कहा दम था की कहानी, अभिनय और निर्देशन की पेचीदगियों को समझने के लिए नीचे पूरी समीक्षा पढ़ें।
 

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कहानी
फिल्म की कहानी कृष्णा (अजय देवगन द्वारा अभिनीत) नाम के एक व्यक्ति से शुरू होती है जो जेल में अपने दिन बिताता है। यह आदमी बार-बार फ्लैशबैक में जाता है और अपने अतीत के बारे में सोचता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, कृष्णा का अपराध सामने आता है और इसके साथ ही उसकी 22 साल पुरानी प्रेम कहानी भी सामने आती है, जिसमें कृष्णा अपने गांव से मुंबई आता है और वसुधा (तब्बू द्वारा अभिनीत) नाम की लड़की से प्यार करने लगता है।
 

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इसके बाद फिल्म में शांतनु माहेश्वरी और सई मांजरेकर युवा कृष्णा और वसुधा की भूमिका में नजर आते हैं। एक दुर्घटना होती है जिसे फ्लैशबैक में तीन बार दिखाया जाता है, इसमें न तो कोई नया एंगल है और न ही कोई ट्विस्ट। दुर्घटना के बाद कृष्णा को जेल भेज दिया जाता है। इसी बीच वसुधा किसी और से शादी कर लेती है जिसका नाम अभिजीत (जिमी शेरगिल द्वारा अभिनीत) है जो कृष्णा की तरह ही वसुधा से प्यार करता है। मन में असुरक्षा की भावना होने के बावजूद वह कृष्णा को जेल से बाहर निकालता है। कहानी के अंत में दुर्घटना से जुड़ा एक ऐसा सच सामने आता है जो काफी हद तक अनुमानित है। इसके बाद कृष्णा नई जिंदगी शुरू करने के लिए देश छोड़ देता है जबकि वसुधा अपनी बाकी जिंदगी अपने पति के साथ बिताती है।

निर्देशन
नीरज पांडे ने न सिर्फ फिल्म का निर्देशन किया है बल्कि इसकी पटकथा भी लिखी है। एक घिसी-पिटी कहानी दिखाई गई है जिसे आपने बड़े पर्दे पर कई बार बेहतर तरीके से देखा होगा। इससे पहले नीरज ने खुलासा किया था कि उन्होंने इस कहानी को 11 साल तक सहेज कर रखा था जिससे फिल्म से और उम्मीदें बंधी थीं लेकिन बिना किसी रोमांच के यह अधूरी प्रेम कहानी आपको निराश करती है। फिल्म की कहानी ही इसकी सबसे कमजोर पेशकश है।

अभिनय
अभिनय की बात करें तो अजय का किरदार एक दुखी और सच्चे प्रेमी के रूप में दिखाया गया है। अजय एक अच्छे अभिनेता हैं, लेकिन इस फिल्म में उनके लिए कुछ भी नया नहीं था, न ही एक्शन और न ही रोमांस। उनके ज्यादातर सीन बार-बार फ्लैशबैक में चले जाते हैं और पुरानी यादों में खोया उनका किरदार काफी कमजोर लगता है। अपनी अच्छी एक्टिंग के बावजूद भी वे इस किरदार को बखूबी पेश नहीं कर पाए हैं। इसे उनके करियर की सबसे कमजोर परफॉर्मेंस में से एक भी कहा जा सकता है। अजय देवगन के साथ-साथ तब्बू भी पूरी फिल्म में सिर्फ दो जोड़ी कपड़ों में नजर आती हैं।

दूसरी तरफ, तब्बू के पास भी इस फिल्म में करने के लिए कुछ खास नहीं है। हालांकि वे दुख और दर्द के भाव को दिखाने में सफल रहीं, लेकिन उनका किरदार प्रभावी नहीं रहा। फिल्म में जिमी शेरगिल का रोल काफी छोटा है और इंटरवल के बाद कहानी में आता है और लोगों को लगता है कि वे कहानी में रोमांच भर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं होता। अगर उनका किरदार थोड़ा लंबा होता तो कहानी को और बेहतर तरीके से स्थापित किया जा सकता था। युवा कृष्ण और वसुधा के रूप में नजर आने वाले शांतनु माहेश्वरी और सई मांजरेकर के कुछ सीन फिल्म में अच्छे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि दोनों ही फिल्म की कहानी को अपने कंधों पर लेकर चल रहे हैं। शांतनु ने एक अच्छे व्यवहार वाले लड़के का किरदार निभाया है, लेकिन हल्के-फुल्के एक्शन सीन भी उन पर सूट नहीं करते। उनकी चॉकलेट बॉय वाली छवि यहां भी बरकरार है।

सई की एक्टिंग तारीफ के काबिल है। उन्हें मराठी होने का पूरा फायदा मिला है क्योंकि फिल्म में उनका किरदार भी मराठी लड़की का है। शांतनु और सई के बीच की केमिस्ट्री भी अच्छी है, बस एक बात खटकती है कि उनके सीन बार-बार रिपीट होते हैं। कहानी में सबसे दमदार किरदार सिर्फ एक है जिसका नाम जिग्नेश है। इस किरदार को जय उपाध्याय ने निभाया है। अजय देवगन के दोस्त के रोल में वे लोगों को हंसाने में सफल रहे।

गाने
'किसी रोज...' और 'ऐ दिल जरा...' गाने अच्छे हैं। सिनेमेटोग्राफी के मोर्चे पर कैमरा हैंडलिंग शानदार है। समुद्र को दिखाते हुए लंबे शॉट प्रभावी हैं। यह कहा जा सकता है कि गाने और सिनेमेटोग्राफी कुछ हद तक फिल्म को बांधे रखती है।

कैसी है फिल्म?
बिना शर्त के प्यार और त्याग की कहानी बहुत कमज़ोर है। औरों में कहाँ दम था देखने लायक नहीं है क्योंकि यह सिनेमा प्रेमियों के लिए एक क्लिच है जो हर फिल्म में कुछ नया तलाशते हैं। हम इस फिल्म को पाँच में से सिर्फ़ 2 स्टार दे रहे हैं।

फिल्म का नाम: औरों में कहां दम था
आलोचकों की रेटिंग: 2/5
रिलीज़ की तारीख: 2 अगस्त, 2024
निर्देशक: नीरज पांडे
शैली: रोमांटिक थ्रिलर