Climate Change:-
Climate Change:- जलवायु परिवर्तन की समस्या को लेकर दुनिया भर में चल रहे सम्मलेन, विज्ञान की काल्पनिक थ्योरी और बुद्धिजीवियों की खोखली मानसिकता की पोल खुल रही है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन की मूल वहज कार्बन उत्सर्जन नहीं है बल्कि खगोल वैज्ञानिकों के द्वारा बिना सूझ बूझ चन्द्रमा के वाष्पित तत्वों के साथ छेड़ -छाड़ है, जिसके कारण चन्द्रमा संक्रमित हो चुका है। जबकि अंतरिक्ष पर अथवा चन्द्रमा पर फिजिक्स के नियन लागू नहीं किये जा सकते।
सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी- ये तीनों ही आपस में एक-दूसरे के पूरक और इनका एक-दूसरे रहने से ही एक अद्भुत थ्री डी प्रिंसिपल निर्मित होता है जो की पृथ्वी पर जीवन के लिए बेहद जरुरी है।
क्योंकि चन्द्रमा के वाष्पीय तत्त्व पृथ्वी पर पानी की मात्रा को तो सामान्य रखते ही है, साथ ही साथ सूर्य में भी हीलियम गैसों को पैदा करते है। जिसकी वजह से सूर्य-प्रकाश मान रहता है। इसी प्रकार सूर्य के अणु चन्द्रमा पर जाते है जिसकी वजह से चन्द्रमा में वाष्पीय चाँदी निर्मित होते है, और चन्द्रमा में चांदनी विद्धमान है।
सूर्य और चन्द्रमा, दोनों के ही अणु पृथ्वी पर आते है जिनसे पृथ्वी पर जीवन है। गौर करने की बात ये है की खगोल विज्ञान के द्वारा बिना सूझ बूझ चन्द्रमा पर छेड़ छाड़ से चन्द्रमा के अणुओं का अत्यधिक मात्रा में सूर्य व समुन्दर में आने से सूर्य ने अपना प्रचंड रूप धारण किया है जिसके कारण पृथ्वी पर जल प्रलय मच जाती है।
यानी की चन्द्रमा के संक्रमित होने से सूर्य और पृथ्वी, अर्थात तीनों ही संक्रमण का शिकार हो चुके है। पृथ्वी के भीतर पेट्रोलियम पदार्थ- पर्यावरण के लिए बने है, ना कि यातायात के संसाधनों के लिए।
आकाशीय बिजली जब पृथ्वी पर गिरती है तो सीधे सीधे पृथ्वी के भीतर पेट्रोलियम पदार्थों से टकराती है, जिसकी कारण पृथ्वी के भीतर “लावा” पैदा होता है। यही लावा पृथ्वी के जल श्रोतों में मौजूद समुन्दर के खरे पानी को प्रथ्वी की सतह पर लाता है, जिनसे पहाड़ों से झरने गिरते है, जंगल हरे भरे होते है और दुनिया को पेय जल प्राप्त होता है।
लेकिन, दुनिया के जिन जिन भू: भागों में पेट्रोलियम पदार्थ खत्म हो चुके है, वहां का जल स्तर भी काफी निचे जा चूका है। पहाड़ों से गिरते झरने सुख रहे हैं, जंगल खत्म हो चुके, भूमि बंजर हो रही है और दुनिया में पेय जल संकट पैदा हो गया है।
पृथ्वी के भीतर पेट्रोलियम पदार्थ क्या पर्यावरण के लिए बने हैं या फिर यातायात के संसाधनों के लिए हैं।
वह दिन भी अब दूर नहीं है जब हमारी यह पृथ्वी पेट्रोलियम पदार्थों के बिना मृत प्राणियों से पटा उल्का पिंड बन जाएगी। जिसके साक्ष एकत्र करने वाला भी कोई मानव शेष नहीं बचेगा।
हमारी यह पृथ्वी खुद नहीं मर रही है, बल्कि चाँद पर छेड़ छाड़ और यातायात के संसाधनों के द्वारा इसे जान बूझकर मारा जा रहा है जबकि पृथ्वी के कातिलों के नाम और पते दुनिया के सरकारों की फाइलों में दर्ज है।
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