सांसदों को संसद मे आते जाते देखने वाले कांस्टेबल ही जब बन गये सासंद..
कहते हैं कि जिंदगी का सफर अप्रत्याशित मोड़ और परिवर्तनों से भरा हुआ रहता है। ऐसी ही एक प्रेरक कहानी उम्मेदराम बेनीवाल की भी है, जो कि पिछले साल लोकसभा चुनाव में बाड़मेर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीत कर सांसद बने हैं।
कभी संसद मार्ग पर तैनात रहने वाले दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल उम्मेदराम अब देश की सबसे बड़ी विधायी संस्था के अन्दर बैठेंगे। सांसदों को आते-जाते देखने वाला पुलिसकर्मी अब खुद सांसद बन गया है।
राजस्थान के बाड़मेर जिले के 'पूनियों का ताला' गांव से ताल्लुक रखने वाले उम्मेदराम बेनीवाल, जो अब नए बने बालोतरा जिले का हिस्सा है, ने अपने जीवन की शुरुआत कृषि और मजदूरी से की थी। 1995 में उन्होंने दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के रूप में सरकारी नौकरी हासिल की, और करीब एक दशक तक वहां अपनी सेवाएं दीं।
साल 2005 में जब उन्होंने पुलिस कांस्टेबल के रूप में अपनी नौकरी छोड़ी, तो वे संसद मार्ग पर तैनात थे, जहां वे अक्सर सांसदों को आते-जाते देखते थे।
लेकिन अपने काम से असंतुष्ट उम्मेदराम ने वो नौकरी छोड़ दी और हस्तशिल्प का व्यवसाय शुरू किया, जो जल्द ही चल गया और उनकी आर्थिक स्थिति काफी अच्छी हो गई।
अपने करियर और राजनीतिक यात्रा के बारे में बताते हुए उम्मेदराम बेनीवाल ने कहा, 'मैं पुलिस में बड़ा अधिकारी बनने का सपना देखता था।
12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने विभिन्न परीक्षाएं दीं। आखिरकार, 1995 में, मैं दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद के लिए चुना गया। मैंने 2005 तक लगभग दस साल तक वहां नौकरी की।
जब मैं कांस्टेबल बना, तो मैंने आगे बड़े पद पर पहुंचने के लिए परीक्षाएं देने का निश्चय किया। मैंने साल 2000 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और उच्च पुलिस पदों के लिए परीक्षाएं दीं, लेकिन मैं सफल नहीं हो सका।' नौकरी के बाद व्यापार में पहुंचने के बारे में चर्चा करते हुए बेनीवाल ने कहा, 'परीक्षाओं में असफल रहने के बाद 2005 में मैंने पुलिस की नौकरी छोड़ने का फैसला किया और हस्तशिल्प व्यवसाय में कदम रखा, जो काफी सफल रहा।
हस्तशिल्प वस्तुओं को बेचने के लिए मैंने जर्मनी में भी स्टॉल लगाए।' बेनीवाल के मुताबिक उनका राजनीतिक जीवन तब शुरू हुआ जब वे अपने पैतृक गांव गए।
उन्होंने बताया, 'कुछ दोस्तों और परिवार के सदस्यों ने मुझे सरपंच (ग्राम परिषद प्रमुख) का चुनाव लड़ने का सुझाव दिया। मैं चुनाव लड़ने का मन बना रहा था, लेकिन वह सीट महिलाओं के लिए आरक्षित थी।
उसके बाद मेरी पत्नी पुष्पा देवी ने इस पद के लिए चुनाव लड़ा और चुनाव जीत गईं। यहीं से मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई।' बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के साथ अपने जुड़ाव को याद करते हुए कहा, 'मैं 2018 में हनुमान बेनीवाल के संपर्क में आया और उनकी पार्टी RLP में शामिल हो गया।
इसके बाद साल 2018 और 2023 में RLP के टिकट पर बायतु से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों बार हार गया। पूरी मजबूती और ईमानदारी से चुनाव लड़ने के बाद बावजूद मुझे एहसास हुआ कि अकेले जीतना मुश्किल रहेगा। जिसके बाद हाल के चुनावों में मैं कांग्रेस में चला गया, सांसद का चुनाव लड़ा और आखिरकार जीत गया।'
दिलचस्प बात यह है कि इस बार त्रिकोणीय मुकाबले में जीतने वाले बेनीवाल ने अपने पिछले दो चुनाव भी इसी तरह लड़े थे। 2018 में RLP उम्मीदवार के रूप में उनका पहला विधानसभा चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार हरीश चौधरी और भाजपा उम्मीदवार कैलाश चौधरी के खिलाफ था, जिसमें वे 13,803 वोटों से हार गए, जबकि उन्हें 43,900 वोट मिले। 2022 में अगले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार हरीश चौधरी और भाजपा उम्मीदवार बलराम चौधरी के खिलाफ चुनाव लड़ा और एकबार फिर हार गए।
हालांकि, दोनों चुनावों में वे दूसरे स्थान पर रहे। इसके बाद साल 2024 में बेनीवाल की किस्मत ने एकबार फिर मोड़ लिया और RLP छोड़ने के बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्हें पार्टी से सांसद का टिकट मिला और वे चुनाव जीत गए।
अब जब वे दिल्ली लौटेंगे तो संसद जाते समय उसी पुलिस स्टेशन से होकर गुजरेंगे, जहां से उन्होंने कभी सांसदों को आते-जाते देखा था। अपनी यात्रा के बारे में बताते हुए उम्मेदराम कहते हैं कि वे दिल्ली से चले गए थे, लेकिन दिल्ली ने उन्हें वापस बुला लिया। वे इसे नियति का मामला मानते हैं।