आचार्य माधव शास्त्री जी कि कलम से..
स्वामी विवेकानन्द .३
हमारे देश में समय-समय पर अनेक विभूतियों का अवतरण होता रहता है जिनके द्वारा समाज में अज्ञानतावश पसरी हुई रीति रिवाज के नाम से भ्रम बढ़ जाता है।
तब महापुरुषों द्वारा सरल और सभ्य मार्ग जो सनातन है का प्रचलन करने में सहायक होते रहते हैं इस ही कड़ी में स्वामी विवेकानन्द जी ने विस्मृत हुई ।
परम्परागत शिक्षा को पुनः स्थापित करने के अनेकों प्रयास किए फलस्वरूप यदि उनके मार्गदर्शन के अनुसार व्यवहार और चरित्र में स्थान देते हैं तो अवश्य ही परिणाम सुखद हो सकते हैं।
लेकिन आजकल की पीढ़ी स्वीकार करती है क्या या केवल मृग मरीचिका बन पथ भ्रष्ट करती है क्योंकि आम जनता में इनकी शिक्षा का कितना महत्व है जो वर्तमान में दिख रहा है "महाजनो गता: स:येन पन्था:" जिस मार्ग से महाजन अनुकरण करते हैं वह ही पथ है।
अज्ञानतावश महाजन को वणिकों से लिया जाता है तो भ्रम निश्चित है जबकि महाजन महापुरुष होते हैं जो पंचतंत्र में बताया गया है।
आइये महापुरुषों की शिक्षाओं को जन साधारण में स्थापित करें ताकि उनके द्वारा प्रतिपादित मार्ग का अनुसरण करने का संकल्प लें ताकि समूचे विश्व में प्रेम और करुणा की सद्भावना का प्रसार हो सकें।
आचार्य माधव शास्त्री जी कि कलम से..